Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 07 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir vvvvNNNN ४ १०-११ નિર્માન્ત તત્ત્વાલક [२७६ लक्षण के लक्ष्य में आकर जिस किसी कलाकुशल विद्वानने जो कुछ अल्प या अधिकरूपसे धर्मका लक्षण किया है वे सभी लक्षण सम्यगदर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप धर्मके लक्षणों में घटित हो जाते हैं। धर्मप्रेमी जिज्ञासु पाठकों के मनोविनोदार्थ यहां भिन्न भिन्न शास्त्रकारोंके कहे हुए धर्मलक्षण का भी कुछ दिग्दर्शन काराया जाता है। शब्दको प्रधान मानने वाले वैयाकरणलोग धृङ्=धारणार्थक धातु से "धर्म" शब्दकी सिद्धिको बतलाते हैं। अर्थात् वैयाकरणोंके मत में धृञ् धातु धारण अर्थ में है, उस धृञ्धातु से 'उणादि' मन् प्रत्यय करनेसे 'धर्म' शब्द बनता है। फिर 'धरति लोकान् ध्रियते वा लौकेरितिधर्मः' अर्थात् जो लोगोंको धारण करता है अथवा जो लोगोंके द्वारा धारण किया जाता है उसे धर्म कहते है। इस तरह वैयाकरणलोग धर्म शब्दकी व्युत्पत्ति करके धर्मका लक्षण करते हैं । वैयाकरणोंके अनुगामी कोशकारोंने भी धृञ् धातु के प्रसिद्ध अनेक अर्थको ग्रहण करके धर्मके पर्याय अपने अपने निबन्धों में लिखे हैं, जैसे-अमरकोशमें लिखा है । कि "धर्माः पुण्ययमन्यायस्वभावाचारसोमपाः"-(अमरसिंड) अर्थात् पुण्य, यम, न्याय, स्वभाव, आचार और सोमप ये छः पर्याय धर्म के हैं, ये सभी पर्याय धर्म के विशिष्ट अर्थ के घोतक हैं। पुण्य, यम, न्याय, स्वभाव और आचार ये पांचों तो अत्यन्त प्रसिद्ध है और सोमपका भी नाम धर्म ही है, क्योंकि अमृतको उत्पन्न करनेवाला सोम कहलाता है, सोमका अधिकतर प्रयोग चन्द्रमा में ही किया जाता है। चन्द्रमा में अमृतका भाग अधिक है, चन्द्रकिरणोंसे जीवनदायिनी औषधियोंकी पुष्टि होती है, इसी लिये चन्द्रमा का नाम अमृतदीधिति अमृतकिरण सुधादीधिति औषधीश आदि है । उन्हीं नामों में चन्द्रमाका सोम नाम भी सार्थक है और उस सोम (अमृतोत्पादक) जैसी वस्तुका जो पालन या रक्षण करता है उसका नाम सोमप है, इसी लिये धर्मका नाम सोमप भी रखा गया है, इसी तरह विश्व और मेदिनी कोश में भी धर्मका पर्याय लिखा हुआ है, जैसे "धर्मोऽस्त्री पुण्य आचारे स्वभावोपमयोः ऋतौ । अहिंसोपनिषन्याये ना धनुर्गमसोमपे ॥ अर्थात् पुण्य, आचार, स्वभाव, उपमा, ऋतु, अहिंसा, उपनिषद, न्याय, धनुः, यम और सोमप ये ११ धर्मके पर्याय हैं, वैयाकरण और कोशकारों की उक्तियोंका पर्यालोचन करनेसे भी सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्र ही धर्मका लक्षण होता है । दर्शनशास्त्रकारोंने भी यथामति भिन्न भिन्न भाषाशैलीसे धर्मका लक्षण किया है, किन्तु सभी दार्शनिकों के यथाकथित धर्मलक्षण सम्यग्दृष्टिज्ञानचारित्रके अन्तर्गत हो जाते हैं। जैसेकर्मप्रधानवादी मीमांसकों ने 'नोदनालक्षणो धर्मः' ऐसा धर्म का लक्षण किया है, For Private And Personal Use Only

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