Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 08 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरशासन-जयन्ती-उत्सव संबंधमां पू. मु. म. श्री. पुण्यविजयजीए श्री. जुगलकिशोरजी मुख्तारने लखेल पत्र અનેકાનત” માસિકના સંપાદક શ્રી. જુગલકિશોરજી મુખ્તારે વીરશાસન-જયન્તીઉત્સવ સંબંધી જે રીતે પ્રચાર કર્યો હતો તે સામે અનેક પ્રકારે વિરોધ વ્યક્ત કરવામાં આવ્યો હતો. આ સંબંધમાં પાટણથી પૂજ્ય મુનિમહારાજ શ્રી. પુણ્યવિજ્યજી મહારાજે એક પત્ર “અનેકાનત’ને સંપાદક શ્રી. જુગલકિશોરજી મુખ્તારને લખ્યો હતો તેની અક્ષરશઃ નકલ અહીં રજુ કરીએ છીએ. -तत्री.. ॥ जयन्तु वीतरागाः॥ मु. पाटन. सागरका उपाश्रय. ता. २७-७-१९४४. (उत्तर गूजरात ) सं. २००० श्रावण शुक्ला सप्तमी मुनि पुण्यविजय तर्फसे. मु. सरसावा-रा. रा. माननीय बाबूजी श्रीयुक्त जुगलकिशोरजी मुख्तार महाशय योग्य सप्रेम सादर धर्मलाभाशीर्वाद । यहाँ पर धर्मप्रभावसे कुशल है। आप भी सपरिवार धर्मप्रतापसे कुशल होंगे। अभी आपकी ओरसे कोई समाचार नहीं है सो लिखते रहे । कथारत्नकोशकी प्रस्तावना छप कर तयार हो गई है। आने पर आपको प्रस्तावनाके जो फॉर्म बाकी हैं वे भेज दिये जायेंगे। वि० आपकी ओरसे "वीरशासनजयन्तीमहोत्सव "के प्रचारविषयमें अनेक लेख लिखे जा रहे हैं, उनके अंदर कोई कोई जगह आपने मेरे नामका उल्लेख किया होगा-है; जिसके बारेमें कुछ खुलासा करनेके विषयमें मेरे पास "जैनधर्म सत्यप्रकाशक समिति-अमदावाद "-का पत्र आया है। अतः मेरी अनिवार्य फर्ज है कि-इस विषयमें मैं अपना मन्तव्य आपको सूचित कर दं ताकि मेरी मान्यता आदिके विषयमें श्वेताम्बर-दिगम्बर समाजमें कोई तहरको भ्रम पैदा न हो। आप “वीरशासनजयन्तीमहोत्सव" मनायें उसमें परमात्मा महावीरकी सन्ततिमें पैदा होनेवाली एवं 'उन परमात्माका अनुयायी'-कहलानेवाली कोई भी व्यक्ति सहकार न देके यह किसी भी तरहसे हो ही नहीं सकता। फिर भी जब उस “जयन्ती उत्सव"का उद्यापन विकृत रूपसे होता हो तव पारस्परिक सहकार एवं पेक्य होनेके बदले एक-दूसरेका सझाव एवं नैकटथ कट ही जाता है। सचमुच ही मुझे यह प्रतीत होता है कि-आपने एक अति आदरणीय कार्यका आरभ्भ करके भी अपनी साम्प्रदायिक मान्यताके भीषण आवतोंमें उसकी ऐसी दुर्दशा कर डाली है कि-आज आपके आदरणीय कार्य में सहकार देनेके बदलेमें, अनिवार्यतया. उसका विरोध करनेका प्रसंग उपस्थित हुआ है। क्या आपको यह प्रतीत नहीं होता कि-वीरशासनजयन्तीउत्सवके प्रचारके वदेलेमें आपने अपने हृदयमें गुप्त स्थान कर रही हुई अपनी साम्प्रदायिक भावनाका प्रचार करते हुए अपने अतिस्तुत्य एवं मौलिक “जयन्तीउत्सव के ध्येयको और इसके द्वारा For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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