Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 06 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [xes] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [२७ (१४) इस चित्र में इन्द्र भगवान को गोदी में लिये पांडक वन में बैड़े हैं । कतिपय देवता कलश भरने को जा रहे हैं, कतिपय भर कर आ रहे है एवं कितेक तैयार खड़े हैं। ऊपर का भाव बताने में चित्रकार बहुत कुछ सफल हुए हैं। "सुरगिरि परजी.. .. सवे सुर कर जोडीने" तक का भाव बताया है:। (१५) देव देवियें क्षीरसागर से भगवान के अभिषेक के लिये जलकलश भर ले जा रहे हैं। दोनों तरफ क्षीरसागर का दृश्य सुन्दर रीति से बताया है। इन्द्र की चारों ओर छत्र चामर इत्यादि उपकरण पडे दिखाये है आत्म साधन रसी..... • आगमे भासिया तेम आणी ठवे का भाव बताया है । 66 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 " (१६) एक ओर इन्द्र भगवान को गोद में लिये बैठे हैं और दाहिनी ओर एक देव छत्र लिये खड़ा है । कतिपय देव देवियां जलकलश भर छत्र चामर सिंहासनादि तैयार लिये खडे हैं। तीर्थजल भरिय कर कलश करी देवता..... .शक उत्संग जिन देखी मन गहगही " उक्त दो गाथाओं का भाव बताया है । (१७) इस चित्र में इन्द्र-इन्द्राणियें जलकलश भर बहुत शीघ्र पर्वत की ओर जा रहे हैं " हंहो देवा हो देवाकालादि ठब्बो " तक का भाव बताया गया है । (१८) प्रस्तुत चित्र के बीच में इन्द्र भगवान को गोदी में लिये बैठा है और क्रमशः देवसमूह कलश द्वारा भगवान को अभिषिक करते हैं । आठबी डाल की एक गाथा का एक भाव बताया गया है । (१९) इस चित्र में सब देवीदेवियें भगवान का अभिषेक कर रहे हैं । (२०) प्रस्तुत चित्र में दीहिनी ओर इन्द्र स्वयं वृषभ का रूप कर भगवान का अभिषेक कर रहा है। बाई ओर दूसरा रूप कर विलेपनादि का भाव बतलाया गया है । शेष इन्द्र पास खड़े हैं। चित्र बडा मार्मिक है । सोहम सुरपति .....भांनसुं हवे भव फंद का भाव बताया है । "" 23 (२१) मेरु पर्वत पर से भगवान को अभिषेक कराकर इन्द्र वापिस माता के पास ले जा रहा है। निम्न भाग में माता के पास स्थापित करनेका भाव एवं एक ओर ३२ कोटि सोनैया निछरावल का भाव बहुत सुन्दर रीति से चित्रित किया है " कोड बत्तीस सोवन वारी...... " तुम सुत अम आधार तक का भाव बताया गया है । 1. (२२) तत्पश्चात् देवता नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव करते हैं । यह भाव बहुत सुन्दर रूपसे बताया है । For Private And Personal Use Only (२३) भगवान श्री ऋषभदेवजी का चित्र इन्द्रद्रययुक्त सुन्दर रीति से fefra किया है । "एम पूजा भगते करो" इस दाल का भाव बताया है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44