Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 06 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०] શ્રીમદ્ દેવચન્દ્રજી ઔર ઉનકી સચિત્ર સ્નાત્રપૂજા [ ४८५ ] (५) चारों ओर बीस स्थानक तप की स्थापना की हुई है, बीच में तीर्थकर का जीव उक्त तपकी आराधना करता हुआ बतलाया गया है अर्थात् दूसरी ढालका सम्पूर्ण भाव इस चित्र में बतलाया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६) उपर के हिस्से में तीर्थकर की माता १४ स्वप्न देख रही है और निम्न भाग में पति को दासी सूचित करती है और बगल में चौदह स्वप्न बडी खूबी के साथ चित्रे हुए हैं। तीसरी ढालकी छओं गाथाओं का भाव बताया है । (७) इस चित्र में इन्द्रकथित शक्रस्तव का भाव बताया गया है । पहिले इन्द्र स्वसिंहासनारूढ है । तत्पश्चात् कुछ चलकर फिर अंजलीकर शक्रFrs से भगवान की स्तुति करता है। सामने देवगण बैठा है। चौथी ढाल की छहों गाथाओं का भाव बताया है । (८) इस चित्र में दाहिनी ओर १० इन्द्राणीयें वार्जित्र इत्यादि के साथ जन्म समय के गीतगान का भाव प्रदर्शित करती है । वाजिंत्रों में मात्र मृदंग और सारंगी दिखते हैं । बाई ओर भगवान का जन्म बताया गया है। चौथी ढाल की है से नौ गाथाओं का भाव बताया है । (९) प्रस्तुत चित्र में ऊपर के एक हिस्से में माता पुत्र को लेकर सोई हुई है और शेष भाग में छप्पन दिग्कुमारीकायें आती हैं और धामधूम पूर्वक भगवान का जन्म महोत्सव करती हैं । यह चित्र अत्यंत चित्ताकर्षक है " श्री तीर्थपतिनुं कलश मज्जन...... गहगहती आणंद तकका भाव दिखाया है। " (१०) इस चित्र के ऊपर के हिस्से में भगवान को दिग्कुमारिकायें माता के पास से लेकर स्नानादिक कार्य के लिये कदलीघर में ले नातीं हैं। बाजू में माता को कुमारीकायें स्नान करवाती है । तत्पश्चात् अभिषेक कर भगवान को वापिस ले जाती है । यह चित्र बडा ही चित्ताकर्षक है । "" हे मातइ तें जिनराज नायो....धर्म दायक ईश " तक का भाव बतलाया है । (११) इन्द्र सभा में बैठा हुआ है, इन्द्रासन प्रकंपित होता है, भगवान का मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करनेके लिये देवताओं को बुलाने के लिये इन्द्र घन्टानाद कराता है, देवता एकत्रित होते हैं । दृश्य बडा ही सुन्दर हैं । जिन रयणीजीनाथ चरण पखालतां " तक का भाव बताया गया है । "L (१२) एक और मेरुपर्वतोपरि सिंहासन तैयार कर इन्द्र माता के पास अभिषेकार्थ भगवान को लेनेके लिये जा रहा है, दूसरी ओर लेकर आनेका भाव बताया है "एम सांभलजी...... .आतमा पुण्ये भरी” का भाव बताया है । (१३) प्रस्तुत चित्र में इन्द्र महाराज भगवान को ले जाते हैं, आगे देव देवी नाटक नृत्य इत्यादि कृत्य करते हैं । यह चित्र भी बडा मार्मिक है। "सुरनायकजी. एक तुं जगदीश ए तक का भाव बतलाया है । : "" For Private And Personal Use Only

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