Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ... ॥ वीराय नीत्यं नमः ॥ શ્રી જૈનસંત્યા પ્રકાશ [ वर्ष ७... .कुभांड ७८...... [१] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ उपदेशरहस्यम् ॥ [ अपरनाम - गौतमकुलकम् ] संग्राहक - पू. मुनिमहाराज श्री जयन्तविजयजी लुद्धा नरा अत्थपरा हवंति मूढा नरा कामपरा हवंति । बुद्धा नरा खंतिपरा हवंति मिस्सा नरा तिन्नि वि आयरंति ॥ १ ॥ ते पंडिया जे विरया विरोहे ते साहुणो जे समयं चरंति । ते सत्तिणो जे न चलंति धम्मा ते बंधवा जे वसणे इवंति ||२|| कोहाभिभूया न सुहं लहंति माणंसिणो सोयपरा हवंति । मायाविणो हुंति परस्स पेस्सा लुद्धा महिच्छा नरयं उर्विति ||३|| कोहो विसं किं अभयं अहिंसा माणो अरी किं हियमप्पमाओ । माया भयं किं सरणं तु सच्चं लोहो दुहो किं सुहमाह तुट्ठी ||४|| बुद्धी अचंड भयए विणीयं कुद्धं कुसीलं भयए अकित्ती । संभिन्नचित्तं भयए अलच्छी सच्चे ठियं संभयए सिरीय || ५ || चयन्ति मित्ताणि नरं कयग्धं चयन्ति पावाई मुणि जयन्तं । चयन्ति सुकाणि सराणि हंसा चएइ बुद्धी कुविअं मणुस्सं || ६ || अरो अत्थं कहिए विलावो असंपहारे कहिए विलावो । विखित्तचितो कहिए विलावो बहुं कुसीसे कहिए विलावो ||७|| दुहाहिवा दंडपरा हवन्ति विज्जाहरा मंतपरा इवन्ति । मुक्खा नरा कोहपरा हवन्ति सुसाहुणो तत्तपरा हवन्ति ||८|| For Private And Personal Use Only

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