Book Title: Jain Satyaprakash 1940 08 SrNo 61
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४४० ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [५ स्वर्णगिरिदुर्गे महाराजाधिराजमहाराजा श्री गजसिंहजी विजयराज्ये महुणोत्रदीपक मं० अचलापुत्र मं० जेसा भाय्य जैवंतदे पु मं० श्रीजयमल्लनाम्ना भा० सरूपदे द्वितीया सुहागदे पुत्र नयणसी सुन्दरदास आसकरण नरसिंहदास प्रमुख कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे ॥ श्री धर्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छनायकभट्टारक श्री हरिविजयसूरिपट्टालंकार भट्टारक श्री विजय सेन.........२ ॥ महावीरस्वामी के मन्दिर की तरह यहां पर एक दूसरा चौमुखजी का मन्दिर है । यह किले की उपर की अन्तिम पोल के पास और किलेदार की बैठक के स्थान से थौडी दूर पर नक्कारखाने के मार्ग पर बना हुआ है । जयमलजी ने इस मंदिर में वि. सं. १६८१ प्रथम चैत्र वदि ५ ( ई. सं. १६२५ ता. १७ फरवरी) को श्री आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा को पधराई, जिसका प्रतिमालेख इस प्रकार है || ६० || संवत् १६८१ वर्षे प्रथम चैत्रवदि ५ गुरौ श्री श्रीमुहणोत्रगोत्रे सा० जेसा भार्या जसमादे पुत्र सा० जयमल भार्या सोहागदेवी श्री आदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठा महोत्सवपूर्वकं प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छे श्री ५ विजयदेवसूरीणामादेशेन जयसागरगणेन ( णिना ) ॥ इसी किले में एक तीसरा जैन मन्दिर और भी है, उसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसका भी जीर्णोद्वार जयमलजी ने करवाया था। जालौर नगर के शहर के तपापाड़ा मुहल्ले में एक जैन मंदिर तथ तपागच्छ का उपाश्रय जो अभी तक विद्यमान है, वह भी जयमलजी के द्वारा बनाये जाने का कहा जाता है । सांचोर -- सांचोर मारवाड़ का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है, यहां पर भी जयमलजी ने वि. सं. १६८९ प्रथम चैत्र वदि ५ ( ई. सं. १६२५ ता. १७ फरवरी) को एक जैन मन्दिर बनवाकर भगवान की जैन प्रतिमा पधराकर प्रतिष्ठा करवाई । जोधपुर- वि. सं. १६८६ ( ई. स. १६२९ ) में जोधपुर में जयमलजीने एक चौमुखजी का जैन मन्दिर बनवाया । शत्रुञ्जय - वि. सं. १६८३ ( ई. सं. १६२६ ) में शत्रुञ्जय में जयमलजी ने पक जैन मन्दिर बनवाया । नाडोल -- नाडोल भी मारवाड का एक प्रसिद्ध नगर है, यहां पद्मप्रभ का प्रसिद्ध जैन मन्दिर है । मन्दिर के मूलनायक भगवान पद्मप्रभ की प्रतिमा जयमलजी ने बनवाई थी, जिसका प्रतिष्ठाकार्य जालौर नगर में हुआ था । २ श्रद्धेय मुनि जिनविजयजी सम्पादित प्रा. जैन. ले. सं. भा २ में प्रकाशित । For Private And Personal Use Only

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