Book Title: Jain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 5
________________ • श्री पर्युषणा स्तोत्रम् . कर्ता-आचार्य महाराज श्री विजयपद्ममूरिजी ॥ आर्यावृत्तम् ॥ सिरिकेसरियाणाहं पणमिय हियणेमिमृरिचरणकयं ॥ बुच्छ सुत्ताणुगयं, पज्जोसवणाइ माहप्पं ॥१॥ पज्जोसवणावसरो, कम्मक्खयसमविहाणनिउणयरो । सच्चाणंदणिहाणो, लम्भइ पुण्णेण पुण्णेण ॥२॥ जह बंभीपमुहाणं, अणुहावो दीसए विसिट्टयरी ॥ कालस्स तहा ओ, आगमवयणेण भव्वेहि ॥३॥ अस्सि पहाणसमए, अप्पभवा भाविणो पमोया जे ॥ पकुणते दाणाई, चिच्चा सवकोहमाणाई ॥४॥ निसुणंति कप्पसुतं, तवम्मि पवरटुमं विहाणेणं ॥ बरिसाहसुद्धिकरणं, मणवंछियदाणसामत्थं ॥५॥ आवस्सयजिणपूया, पोसहगुरुभत्तिभाववंदणयं ॥ साहम्मियवच्छल्लं, तहप्पयारं परं किच्चं ॥६॥ साहंति ते लहंते, खिप्पं संतिं समोवसम्गाणं ॥ वरबुद्धिकित्तिरिद्धी, सिद्धिं पवरट्ठगुणललियं ॥७॥ इंदो जह देवाणं, चंदणरुक्खो तरूण सिट्टयरो ॥ मेरु गिरीण सिट्ठो, पसूण सीहो पहाणयरो ॥ ८ ॥ गंगा गईण मुक्खा, कमलं पुप्फाण तेयसालीण ॥ भाण पहाणभावो, कंदप्पो रूबसालीणं ॥९॥ हंसो जह पक्खीणं, सिट्ठी मंताण वरणमुक्कारो ॥ जलहीणं च सयंभू, तहेव पज्जोसणा गेया ॥१०॥ पज्जोसवणापरवं, जिणसासणमंडणं पवरसुहयं ॥ आराहता भव्वा. मंगलमाला लहंतु सया ॥ ११ ॥ रइयं संघहियटुं. गुरुवरसिरिणमिमूरिसीसेणं ॥ पोम्मेणं सुइसिययं, पज्जोसवणाइ माहप्पं ॥ १२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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