Book Title: Jain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 13
________________ શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક [१५४ कल्पवृक्षर्क नीचे ऊंचे आसन पर अधिष्ठित हैं। वृक्ष के ऊपर जैन तीर्थकर की ध्यानमुद्रा में आसीन मूर्ति है। दम्पती के पीछे कमलाकृति शिरश्चक है। स्त्री की बाई गोदमें एक बालक है। चौकी पर सामने की ओर एक पुरुष और छः बालक हैं, बालक कीड़ा संलग्न हैं । बालकोंके पास दो मेष (मेढे) हैं जिनके ऊपर वे चड़ी खा रहे हैं। मूर्तिमें सबसे मार्ककी बात यह है कि कल्पवृक्ष के तने पर सामने की और उपर को चढतो हुई एक छपकलो का चित्र है। मूर्ति सम्भवत किसी यक्ष-यक्षिणी की प्रतीत होती है। पर इसका पूरा प्रामाणिक विवरण अभी नहीं मिला । आशा है कोई जैन विद्वान् इस पर अधिक प्रकाश डालने की कृपा करेंगे। इसी प्रकारकी दो छोटी मूर्ति और भी हमारे अजायबघरमें हैं। एक ऐसो ही मूर्ति बूढी चंदेरी स्थान (रियासत ग्वालियर) से श्री गर्द महोदय को मिलो थी जिसका चित्र भारतीय पुरातत्व विभागकी सन् १९२४-२५ की वार्षिक रिपोर्टकी प्लेट नं. ४२ डी० ( Plate XLII d) में दिया हुआ है। उसकी प्राप्ति एक मध्यकालीन जैन मन्दिरसे ही हुई थी। उस रिपोर्ट में उसका विशेष परिचय नहीं दिया गया है। इन मूर्तियोंका विवेचन किसी विद्वानके द्वारा कर्तव्य है। જેના અનુસંધાન રૂપે આ વિશેષાંકની યોજના કરવામાં આવી શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશનો પ્રથમ વિશેષાંક શ્રી મહાવીર નિર્વાણ વિશેષાંક ૨૨૮ પાનાના આ દળદાર અંકમાં ભગવાન મહાવીરના જીવનને લગતા અનેક વિદ્વત્તા ભર્યા લેખે આપવામાં આવ્યા છે. કિંમત-ટપાલખર્ચ સાથે તેર આના. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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