Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ॥ श्री ॥ महोदधि । प्रदीपेनार्चयेदकं, उदकेन वागीश्वर तथा वाग्मि, मगलेन च मंगल ॥ • त्वदीयं वस्तु हे विज्ञ ! तुझ्य मेव समर्प्यते • ( अर्पित है गुणवत, तुम्ही को वस्तु तुम्हारी) समर्पण विद्वदुरत्न, प्रतिभामूर्ति, पाण्डित्य विभूति, सरस्वती पुत्र, प्रज्ञापु ज, शोधखोज पटु, प्रख्यात उद्भट सम्पादक, शुद्ध प्रामाणिक कुशल लेखक, प्राच्य विद्यामहोदधि, शताधिक निबन्ध प्रणेता, अनेक भाषा निष्णात, मार्मिक समालोचक, निष्पक्ष विचारक, इतिहास मर्मज्ञ, अनेक ग्रन्थमाला निर्देशक, पुरातत्वज्ञ, गुणिजनानुरागी, सज्जनोत्तम, प्राध्यापक, मान्यवर, दिवंगत श्रीमान् डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय की पुनीत सेवा में यह विद्वज्जनमनरजनो ज्ञाननिधि महान् मौलिक कृति सादर समर्पित जन्म ६ फरवरी सन् १६०६ सदलगा (बेलगाव ) स्वर्गवास ८ अक्टूबर सन् १६७५ कोल्हापुर (महाराष्ट्र) 2 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 685