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[* जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
भी पोस बुद २ की मिति ही सही है क्योकि उत्तर पुराण मे मल्लिनाथ का सयम अवस्था का दीक्षा दिन मगसर सुद ११ का लिखा है । अत दीक्षा से ६ दिन वाद पोस वुद २ को इन्हे केवल ज्ञान हुआ यह सिद्ध होता है देखो उत्तरपुराण पर्व ६६ श्लोक ५१-५२ । इनका हिन्दी अनुवादको ने सगति पूर्वक ठीक अर्थ नही देकर जन्म की तरह ही अर्थात् मगसर सुदी ११ अर्थ कर दिया है किन्तु दोनो श्लोक युग्म हैं उनका अर्थ यह होना चाहिए कि जन्म की तरह के ही दिनादि (मगसर सुदी ११) मे छाद्मस्थ्य काल के ६ दिन बीतने पर अर्थात् पोष वुदी २ को केवल ज्ञान हुआ। , रहा पार्श्वनाथ के ज्ञान कल्याण की तिथि मे अन्तर सो यहां भी मुद्रित उत्तर पुराण के पर्व ७३ श्लोक १४४ मे उल्लिखित चैत बुदी १४ की मिति वाला "चतुर्दश्या" पाठ अशुद्ध है इस तिथि के साथ विशाखा नक्षत्र का मेल वैठता नही है इस वास्ते पाठ भी "चतुर्थ्याच" चाहिए। चैत बुदी ४ को विशाखा नक्षत्र की सति भी भली प्रकार बैठ जाती है। पार्श्वनाथ के सभी कल्याणक विशाखा नक्षत्र मे हुए है अत इनके ज्ञान कल्याणक में भी जो विशाखा बताया है वह ठीक है। उसका मेल चौथ के साथ ही . बैठता है १४ के साथ नही अत चैत बुदी ४ ही ज्ञानकल्याणक की तिथि है।
इस प्रकार कल्याण माला की तिथियो और उत्तर पुराण की तिथियो मे जो मामूली फर्क था वह भी रफा होकर दोनो ग्रन्थो की सव ही तिथियां वरावर वरावर मिल जाती हैं। मुद्रित उत्तर पुराण मे सम्भवनाथ की दीक्षा की तिथि और मुनि सुव्रत की जन्म तिथि का उल्लेख नही है ऐसा हस्तलिखित प्रतियो मे उक्त तिथि सूचक पाठ छूट जाने