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★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
इसी तरह हरिवंश पुराण में उल्लिखित तिथि नक्षत्र भी कही कही अनमेल रहते है । जिनका विवरण लेखवृद्धि के भय से यहाँ छोड़ा जाता है । हरिवंश पुराण मे जन्म और मोक्ष इन दो कल्याणको के ही नक्षत्र दिये हैं। शेष कल्याणको के नक्षत्र शायद इसलिये नही दिये कि उनके नक्षत्र भी
ही है जो जन्म के हैं । कल्याणको के नक्षत्रो का अनायास ही कुछ ऐसा योग वन गया है कि प्राय प्रत्येक तीर्थकर के पाचो कल्याणक एक ही नक्षत्र मे हो गये है । जैसे ऋषभदेव के सभी कल्याणक उत्तरापाढ में हुए है । अजितनाथ के सभी रोहिणी मे हुए है इत्यादि । कही कुछ मामूली फर्क भी है जिसका विवरण लेख के अन्त में दिये नक्शे से ज्ञात कर सकते है ।
जब हम आचार्य गुणभद्रकृत उत्तर पुराण मे लिखे तिथि नक्षत्रो मे मेल की जाच करते हैं तो उन्हे हम एक दम सहपाते है। यहाँ तिथियो के साथ जो नक्षत्र दिये गये हैं वे ज्योतिष सिद्धात की गणना के अनुसार वरावर बैठते चले जाते हैं । कही कुछ भी अन्तर नही पडता है । ये मास पक्षतिथियाँ इतनी प्रामाणिक है कि प० आशाधर जी ने इन्ही को अपनाई है । आशाधर जी ने एक कल्याणमाला नामक पुस्तिका निर्माण की है जो सिर्फ ३५ श्लोक प्रमाण है । वह माणिक चन्द्र ग्रन्थमाला के "सिद्धांतसारादि सग्रह" के साथ छपी है । उसका अन्तिम पद्य यह है
इतीमां वृषभादीनां पुष्यत्कल्याणमालिकाम् । करोति कंठे भूषां यः सः स्यादाशाधरेड़ित ॥
इससे निश्चय ही यह प० आशाधर की कृति है । इसमे आशाधर ने पचकल्याणको की जो मास पक्ष - तिथियाँ दी है