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इसे अपवाद कथन नही समझना
पचकल्याणक तिथियाँ और नक्षत्र ]
पाँचो कल्याणक होने में चाहिए ।
इस प्रकार उत्तरपुराण की सब तिथियो और उनके साथ लिखे हुए नक्षत्रो की संगति भी अच्छी तरह से बैठ जाती है । यहाँ मैं यह भी सूचित किये देता हूँ कि कवि पुष्पदन्त कृत अपभ्रश महापुराण मे भी कल्याणको के तिथि नक्षत्र उत्तर पुराण के अनुसार ही लिखे है । प० आशाधर जी के सामने त्रिलोक प्रज्ञप्ति और हरिवंश पुराण के मौजूद होते हुए भी उन्होने स्वरचित कल्याणमाला मे इन दोनो ग्रन्थो की तिथियो की उपेक्षा करके एक उत्तरपुराण की कल्याणक तिथियो को स्थान दिया है । इससे उत्तरपुराण की तिथियो की प्रामाणिकता पर गहरा प्रकाश पडता है ।
इस सारे ऊहापोह का फलितार्थ यही है कि उत्तर पुराण की शुद्ध तिथियां वे ही हैं जो प० आशाधर जी ने कल्लाणमाला में लिखी हैं । और कवि पुष्पदन्तकृत महापुराण मे जो तिथि नक्षत्र लिखे हैं वे भी सब उत्तरपुराण के अनुसार लिखे है । यहाँ लिखी तिथियां भी कल्याणमाला से मिलती हैं । ये पुष्पदन्त गुणभद्राचार्य से करीव १७५ वर्ष बाद ही हुए हैं । इस तरह उत्तरपुराण, अपाश महापुराण और कल्याणमाला इन तीनो की तिथिये एक समान मिल जाने से तथा नक्षत्रो की संगति उनके साथ लिखी तिथियो के साथ बैठ जाने से तिथि विषयक गडवड जो लम्बे
चली आ रही थी वह अब समाप्त हो हमको हमारी पूँजा पाठ की पुस्तको की माफक शुद्ध करके काम में लेनी चाहिए ।
अरसे से हमारे यहाँ गई है | अतः अव तिथियो कों
इसी