Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 15
________________ नाम (xil) पूर्वप्रकाशन ५५. प० जौहरीलाल जी रचित विद्यमान विशति तीर्थकर पूजा पर विचार ("जैन मित्र" नवम्बर ६६) ६७४ संशोधन नोट-पृष्ठ ६१ पर निबन्ध का न०४ दिया है वहाँ ५ होना चाहिये इसीतरह पृष्ठ६७ पर निबन्ध का नं० ६ दिया है वहीं ७ होना चाहिये । पृष्ठ १०४ पर न० ७ दिया है वहाँ ८ होना चाहिये, पृष्ठ ११६ पर ८ दिया है वहाँ ६ होना चाहिये, पृष्ठ १२६ पर ६ दिया है वहाँ १० होना चाहिये। सिर्फ निबन्धो के न० मे गडबड है और कोई गडबड नही है । आगे क्रम न० ठीक हो गया है जहाँ गडबड है कृपया वहाँ पहिले से ठीक कर लेवे।

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