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रात्रि-भोजन त्याग ]
[ ७ भग, जवा खाने मे आ जाय तो जलोदर और छिपकली खाने मे आजाय तो कोढ उत्पन्न होता है । इसके अलावा सूर्यास्त के पहिले किया हुआ भोजन जठराग्नि की ज्वाला पर चढ जाता है-पच जाता है इसलिए निद्रा पर उसका असर नही होता है । भगर इससे विपरीत करने से रात को खाकर थोडी ही देर में सो जाने से चलना फिरना नही होता अत पेट में तत्काल का भरा हुआ अन्न कई वार गम्भीर रोग उत्पन्न कर देता है। डाक्टरी नियम है कि भोजन करने के वाद थोडाथोडा जल' पीना चाहिए यह नियम रात्रि मे भोजन करने से नही पाला जा सकता है क्योकि इसके लिए अवकाश ही नही मिलता है । इसका परिणाम अजीर्ण होता है । हर एक जानता है कि अजीर्ण सब रोगो का घर होता है । "अजीर्ण प्रसवा रोगा" इस प्रकार हिंसा की बात को छोड़कर आरोग्य का विचार करने पर भी सिद्ध होता है कि रात्रि मे भोजन करना अनुचित है।
इस तरह क्या धर्मशास्त्र और क्या आरोग्य शास्त्र सव ही तरह से रात्रि भोजन करना अत्यन्त बुरा है। यही कारण है जो इसका जगह-जगह निषेध जैन धर्म शास्त्रो मे किया गया है जिनका कुछ दिग्दर्शन ऊपर कराया गया है। अब हिंदू ग्रन्थो के भी कुछ उद्धरण रात्रि भोजन के निषेध मे नीचे लिखकर लेख समाप्त किया जाता है क्योकि लेख कुछ अधिक बढ गया है।
अस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिरमुच्यते । अन्नं मांससम प्रोक्त मार्कंडेयमहर्षिणा ।।
- मार्कंडेयपुराण