Book Title: Jain Marriage Ceremony Gujarati
Author(s): 
Publisher: Pallavi and Dilip Mehta

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Page 10
________________ (अर्थ: यार तत्वो मंगल स्वरूप छे अर्हन्त प्रभु मंगल स्व३प छे. सिद्ध हेवो मंगल स्व३प छे. साधुटनो मंगल स्व३प छे. डेवली प्रलुद्वारा प्रज्ञप्स धर्म मंगल३य छे. भगतां यार तत्व सर्वश्रेष्ठ छे. अरिहंत सर्वश्रेष्ठ छे. सिद्ध देवो सर्वश्रेष्ठ छे. साधुनो सर्वश्रेष्ठ छे. डेवली प्रभुद्वारा प्रज्ञप्त धर्म सर्वश्रेष्ठ छे. हुं यार (श्रेष्ठ) तत्वोने शरो भ छं. अरिहंतोने शरदो भ सिद्ध हेवोने शरो छु. साधुनोने शो भG छु. કેવલી પ્રભુએ પ્રચારિત ઘર્મને શરણે જાઉં છું.) खापो सौ ल्याएाहारी मांगलिक सांलण्युं. हवे, वरन्या तेभर जन्जेनां भाता-पिताने पड़ा विनंती हे तेजो विनेश्वर प्रभुनां थराडभलपर अक्षत संपति अपे. हवे अर्हत भ खेटले सर्वडाल वंहनीय योवीस तीर्थर भगवंतोनी पून श३ थाय छे. प्रत्यड तीर्थपुर प्रभुनुं नाभ जोलाय त्यारे तिने विनंती तेखो लगवंत वासक्षेप थी लाव पूर्व 5रे. पायलजहेन छेला श्लोड वजते वरन्या, पूरनसामग्री, भूमि वगेरे पर पवित्र जनो छंटाव घरी अक्षत जंलि अर्पशे.

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