Book Title: Jain Marriage Ceremony Gujarati
Author(s): 
Publisher: Pallavi and Dilip Mehta

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ IISI-GiεG II अस्मिन् म्भन्येष जंधोद्वयोवें अमे धर्भे वा गृहस्थत्वभाभि । योगो भतः पंथ देवाग्निसाक्षी भया पत्योरंयलग्रंथिजंधात् ॥ (भावार्थ: तभारा जब्जेनुं खा (छेडा) जंधन सान्भमां अमने धर्ममा लागीहार३५ छे. पत्नी जने पतिना छेडानी गांठना जंधनथी पांय हेव जने अमिनी साक्षी खे जा योग थयो छे.) हवे लग्न संस्कारना हार्टसभी 'हस्तमेणाप'नी विधि शई थाय छे. यि. हीप्तिना पिताश्री हिलीपलाने विनंती डे वर जने न्याना माशा हाथभा नो मंगण साथियोडरी, वरना भाशा हाथ उपर न्यानो भयो हाथ जानं पूर्व भूडी. जा शुभ मुहूर्ते, पिनेश्वर लगवाननी साक्षीजे, हस्तभेणाप उरावे. आा विधि घरम्यान हीति न हीर्घ श्वास ल, हुं लठ ध्यान धरी, वित्तने खेडा 5री, नवार मंत्र भनभां त्रा वार जोलशे श्लोष्ठना छेक्षा यरा 'ॐ अर्हम्' मा गान व्रजते न्यानां भाता-पिता, उन्याना भणेला हाथ उपर सहेन वणधारा वहावी, पोतानी संभति जने खानं व्यक्त रशे. विधि हरम्यान हस्तमेणापनो श्लो गवाशे. ॥ हस्तभेला ॥ हारिद्र पं भवलिप्य सुवासिनीलिः । धत्तं द्वयो नयोः जलु तौ गृहीत्वा ॥ क्षिरं निवसुतां लवभग्रपाणिम् । लिम्पे वरस्य यरद्वय यो नार्थम् ॥ भावार्थ. सौभाग्यवंती नारीस्रो भेने पीठी योणी छे खेवी पोतानी पुत्री नाभागा लाने वरना इंडुरंग्या हाथमां प्रन्याना पिता भूछे छे.)

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44