Book Title: Jain Marriage Ceremony Gujarati
Author(s): 
Publisher: Pallavi and Dilip Mehta

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Page 18
________________ हीप्ति - ४न, साथी भुवनभां प्रत्येक पगले तमे रोजी नां साथी जनो छो. "भन, डर्भ, शारीरिष्ठ डिया, प्रेम, सानं जने ही धोयुष्यनी जाजतभां जीनां सहलागी जनी, साया अर्थमां भुवननां सर्व सुज पाभीजे" -जे लावना हृध्यमां धारी, जेज्जीभनो हाथ आली, शासनदेवतानी साक्षी में घीप इरता छ मंगलदेश इरी, तभो साथां भुवनसाथी जनो. मेरा इस्ती वजते ऽन्या जागण जने वर पाछ्ण रहेशे, जा विधि दरम्यान घरे इेरे से श्लोड गवाशे जने रेराने अंते भ्यारे 'स्वाहा' બોલાય ત્યારે વરકન્યા ‘૩૪ અર્હમ્’ બોલી, પ્રભુચરણે અક્ષત અંજલિ अर्थशे. ॥ मंगरा ॥ सभ्भति सद्गृहस्थत्वं, पारिव्राभ्यं सुरेन्द्रता । साम्राभ्यं परमार्हन्त्यं निर्वाएां येति सप्तम् ॥ ॐ ह्रीं श्री सभ्भति परमस्थानाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्री सद्दगृहस्थ परमस्थानाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्री पारिव्राभ्य परमस्थानाय नमः स्वाहा | ॐ ह्रीं श्री सुरेन्द्रता परमस्थानाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्री साम्राभ्य परमस्थानाय नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं श्री परभार्हन्त्य परमस्थानाय नमः स्वाहा ।

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