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" दरेक जीव जुदा जुदा छे. ममत्व ए बन्धनुं कारण छे." १ आ जातना पाठोनो मेळ करवामां ज नयो कार्य भजवे छे. स्याद्वादनुं लक्ष न रखाय तो क्यांय सुमेळ न थायः मात्र विरोधाभास ज उभो रहे. एगे आया ना सुअर्थोनो पण
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विचार करी लईए.
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[१] द्रव्यनी दृष्टिए ' एक आत्मा' छे. १२
[२]
उपयोग ए जीवनुं लक्षण छे." आ रीते उपयोगरूप एक लक्षण होवाथी दरेक आत्मा एक स्वरूपवाळा थया. आ प्रमाणे एक लक्षण होवाथी 'एक आत्मा' पम कही शकाय छे. ३ अनेक जातना चोखानी अनेक गुणो भरेली होय छतां आ चोखा छे एम कही शकाय छे, एम अनेक आत्माओने स्वरूप (जात - गुण) नी दृष्टिए एक कही छे.
[३] "जन्म-मरण, सुख-दुःख वगेरेना संवेदनोमां आत्माने कोई सहाय आपी शकतुं नथी. आत्माने एकलायज ते भोगववानां होय छे. ए रीते 'आत्मा एक' छे एम विचारी शकाय.'
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[४] आ प्रमाणे सामान्य रूपथी (गुणनी दृष्टिथी) आत्मा एक छे अने विशेष रूपथी ( गणनानी दृष्टिथी) अनेक छे. ५
आ प्रमाणे नयसापेक्ष विचार थोय, तोज ए ग्रंथोना स्पष्ट अने सुसंगत अर्थोनो ख्याल आवे. आचार्य श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजीए एक स्थळे जणावयुं छे के
१. सव्वे जीवा पुढो पुढो,
२.
ममत्तं बंधकारणं ॥
[ श्री चिरंतनाचार्य कृत पंचसूत्र, सू. २ ] आत्मा इति ।
""
३.
[ श्रा स्थानांग सूत्र, पृष्ठ १२, पंक्ति ४ ] "उपयोगलक्षणो जीवः" इति वचनात् तदेवनुपयोगरूपै कलक्षणवत्त्वात् सर्वे एवात्मन एकरूपाः एवं चैकलक्षणत्त्वाद् 'एक आत्मा' इति ।
" द्रव्यार्थतया एक
[ स्थानांगसूत्र, अ. १, पृ. १३, पंक्ति ७ ]
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४.
" अथवा जन्ममरणसुखदुःखादि संवेदनेष्वसहायत्वाद् एक आत्मा' इति
भावनीयम् ।"
५. " तदेवं सामान्यरूपेणात्मा एको, विशेषरूपेण त्वनेकः ।”
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[ स्थानांगसूत्र अ. १, पृ. १३, पंक्ति ८ ]
[ स्थानांग सूत्र अ. १, पृ. १३, पंक्ति ६ ]
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