SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ " दरेक जीव जुदा जुदा छे. ममत्व ए बन्धनुं कारण छे." १ आ जातना पाठोनो मेळ करवामां ज नयो कार्य भजवे छे. स्याद्वादनुं लक्ष न रखाय तो क्यांय सुमेळ न थायः मात्र विरोधाभास ज उभो रहे. एगे आया ना सुअर्थोनो पण 66 39 विचार करी लईए. (6 [१] द्रव्यनी दृष्टिए ' एक आत्मा' छे. १२ [२] उपयोग ए जीवनुं लक्षण छे." आ रीते उपयोगरूप एक लक्षण होवाथी दरेक आत्मा एक स्वरूपवाळा थया. आ प्रमाणे एक लक्षण होवाथी 'एक आत्मा' पम कही शकाय छे. ३ अनेक जातना चोखानी अनेक गुणो भरेली होय छतां आ चोखा छे एम कही शकाय छे, एम अनेक आत्माओने स्वरूप (जात - गुण) नी दृष्टिए एक कही छे. [३] "जन्म-मरण, सुख-दुःख वगेरेना संवेदनोमां आत्माने कोई सहाय आपी शकतुं नथी. आत्माने एकलायज ते भोगववानां होय छे. ए रीते 'आत्मा एक' छे एम विचारी शकाय.' 158 64 [४] आ प्रमाणे सामान्य रूपथी (गुणनी दृष्टिथी) आत्मा एक छे अने विशेष रूपथी ( गणनानी दृष्टिथी) अनेक छे. ५ आ प्रमाणे नयसापेक्ष विचार थोय, तोज ए ग्रंथोना स्पष्ट अने सुसंगत अर्थोनो ख्याल आवे. आचार्य श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजीए एक स्थळे जणावयुं छे के १. सव्वे जीवा पुढो पुढो, २. ममत्तं बंधकारणं ॥ [ श्री चिरंतनाचार्य कृत पंचसूत्र, सू. २ ] आत्मा इति । "" ३. [ श्रा स्थानांग सूत्र, पृष्ठ १२, पंक्ति ४ ] "उपयोगलक्षणो जीवः" इति वचनात् तदेवनुपयोगरूपै कलक्षणवत्त्वात् सर्वे एवात्मन एकरूपाः एवं चैकलक्षणत्त्वाद् 'एक आत्मा' इति । " द्रव्यार्थतया एक [ स्थानांगसूत्र, अ. १, पृ. १३, पंक्ति ७ ] 6 ४. " अथवा जन्ममरणसुखदुःखादि संवेदनेष्वसहायत्वाद् एक आत्मा' इति भावनीयम् ।" ५. " तदेवं सामान्यरूपेणात्मा एको, विशेषरूपेण त्वनेकः ।” Jain Education International [ स्थानांगसूत्र अ. १, पृ. १३, पंक्ति ८ ] [ स्थानांग सूत्र अ. १, पृ. १३, पंक्ति ६ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001703
Book TitleJain Mahavira Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherShrimad Buddhisagar Sahitya Prakashan Granthamala Ahmedabad
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Sermon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy