Book Title: Jain Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 14
________________ भूमिका। आज बड़े हर्ष के साथ "जैनलेख संग्रह " का दूसरा खंड पाठकों के सम्मुख उपस्थित करता हूं । इसका प्रथम खंड प्रकाशित होने के पश्चात् द्वितीय खंड शीघ्र ही प्रकाशित करने की इच्छा रहते हुए भी कई अनिवार्य कारणों से विलम्ब हुआ है। न तो प्रथम खंड में कोई विस्तृत भूमिका दी गई थो और न यहां ही लिख सके । जैनियों का खास करके हमारे मूर्त्तिपूजक श्वेताम्बर भाइयों का धर्मप्राण शताब्दियों तक बराबर आचार्यों के उपदेश से देवालय और मूर्तिप्रतिष्ठा की ओर कहां तक अग्रसर था और वर्तमान समय पय्र्यंत कहां तक है यह लेख संग्रह ” से अच्छी तरह ज्ञात हो सकता है । ऐतिहासिक दृष्टि से जिस प्रकार उपयोगी समझ कर प्रथम खंड प्रकाशित किया था यह खंड भो उसो इच्छा से विद्वानों की सेवा में उपस्थित करता हूं । सन् १९९८ में प्रथम खंड प्रकाशित होनेपर प्रसिद्ध ऐतिहासिक श्रद्धेय श्रीमान् राय वहादुर पं० गौरीशंकर ओझा जी ने पुस्तक भेजने पर उस संग्रह के उपयोगिता के विषय में जो कुछ अपना वक्तव्य प्रकट किये थे उसका कुछ अंश नीचे उद्धृत किया जाता है। उक्त महोदय अजमेर से ता० २६-१०-१६१८ के पत्र में लिखते हैं कि : " आपके जैनलेख संग्रह को आदि से अंत तक पढ गया हूं। आपका यह ग्रन्थ इतिहासवेत्ताओं तथा जैनसंसार के लिये रत्नाकर के समान है। अंत में दी हुई ताक्षिकायें जी बड़े काम की बनी हैं उनसे जिन्न १ गनों के अनेक आचार्यों के निश्चित समय का पता लगता है, यदि इसके दूसरे नाग जी निकलेंगे तो जैन इतिहास के लिये बड़े ही काम के होंगे " । प्रथम खंड में साधारण सूत्री के अतिरिक्त "प्रतिष्ठास्थान", "श्रावकों की ज्ञानि-गोत्रादि" और " आचार्यों के गच्छ और सम्वत्" की सूची दी गई थी। इस बार इन सभोंके शिवाय राजा महाराजाओं के नाम, जो इन लेखों में पाये गये हैं, उनकी तालिका भी समय २ पर आवश्यक होती है समझ कर इस खंड में दी गई है। मैं प्रथम खंड की भूमिका में कह चुका हूं कि केवल ऐतिहासिक दृष्टि से यह संग्रह प्रकाशित हुआ है। जिस समय यह खंड छप रहा था उसी समय श्री राजगृह तीर्थ में श्वेताम्बर दिगम्बरों में मुकदमा छिड़ गया था पश्चात् केस आपस में तैं हो चुका है area इस विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु मुझे बड़े खेद के साथ दिखना पड़ता है कि दिगम्बरो लोग मुझे ऐसे कार्य में उत्साहित करने के बदले स्वार्थवश उक्त मुकदमे में इजहार के समय मेरे जेनलेल संग्रह पर हर तरह से हैरान किये थे । "Aho Shrut Gyanam"

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