Book Title: Jain Katha Sahitya Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ August-2004 77 केटकेटली अनुकूळताओ - प्रतिकूळताओ वच्चे आ मानवधर्म स्थिर थयो, तेनुं चित्र स्पष्ट करे छे ते साथे ज भारतीय मूळना प्राचीन वेदधर्म अने बौद्ध धर्म पर पण प्रकाश पाडे छे. भारतीय मूळना धर्मो वच्चे जे संघर्ष अने समन्वय थयां, तेनो निर्देश पण मळे छे. १.१.२ जैन कथासाहित्य- मूळ जैन कथासाहित्य- मूळ प्राचीनतम छे. ईसवी संवतना आरंभ पहेलाना : त्रण हजार अने पछीना बे हजार : आम आ परंपरा पांच हजार वर्ष जेटली प्राचीन होवानुं तो पश्चिमना विद्वानो पण स्वीकारे छे. भारतीय मत प्रमाणे आ परंपरा एथी पण जूनी छे. मूळ : आ कथासाहित्यना मूळने जाणवा माटे एनी कथाओ क्यारे, केवी रीते, क्या क्या उद्भवी छे, ते जाणवू पडे. आ दृष्टिले आ कथासाहित्यनां मुख्य मूळ बे छे : १. जैन अने २. समग्र भारतीय अर्थात् केटलीक कथाओ एवी छे, जे धर्मना ज उद्भव-विकासनी साथे आ क्षेत्रमा ज जन्मी अने प्रचारमा आवी. बीजा वर्गनी जे कथाओ छे ते भारतनी एक समान अने मुख्य के सर्वसाधारण धारा छे तेमांथी जैन कथासाहित्यमां आवी छ : १. तीर्थंकरो, तीर्थो, जैनस्थापत्यो, जैनधर्म साथे परोक्ष रीते जेमनो संबंध रह्यो एवां राजवंशो, मंत्रीओ, श्रेष्ठिओ, साधु-साध्वीओ, श्रावकश्राविकाओ, जैनधर्मनां मुख्य सिद्धांतो, 'तत्त्वो, व्रतो, मंत्रो वगेरे साथे संकळायेली कथा : आ वर्गनी बधी ज कथाओना उद्गम-विकास जैनधर्मना ज पोतिका के अंगभूत एवा प्रवाहमां थयो छे. २. उपरना वर्गमा जेनो समावेश नथी थतो तेवी बोधक-उपदेशक दृष्टांतमूलक कथाओ, मनोरंजनात्मक लोककथाओ : भारतीय समग्र अने सर्वसामान्य धारामांथी आवी छे. वैदिक धर्म अने बौद्ध धर्ममां पण आ सामान्य धारानी कथाओ आवी छे. आ कोमन-स्ट्रीममांथी त्रण प्रकारनी कथाओ जैन कथा साहित्यमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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