Book Title: Jain Katha Sahitya Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ 80 अनुसंधान-२९ जैनकथासाहित्यना उद्गम-विकासनी दृष्टिले महत्त्व छे. सातमा अंगमां महावीरनी धर्मदेशनाथी ध्यान अने तपथी मोक्षदशा प्राप्त करनारनी कथा छे. आ कथाओमां देहना असह्य दुःखदर्दोने तपस्वीओ स्वेच्छाओ हसता मुखे सहन करे छे. आत्मतत्त्वनी प्रतीति अने देहभावथी मुक्ति ते शुं छे, ते आवी कथाओथी प्रगट थाय छे. आगमसाहित्य पछीनो कथासाहित्यनो बीजो तबक्को चरित अने प्रबंधोनो छे. आमां प्राकृत, अपभ्रंश उपरांत संस्कृत भाषामां पण रचायेली कृतिओ मळे छे. पछीना त्रीजा तबक्कामां तो छेक ओगणीसमी सदीना अंतभाग सुधी जैन कथासाहित्यमां अनेक कृतिओ रचाइ. आवी कृतिनी कथा मुख्यत्वे रासरूपे छे. बारमासी, फागु वगेरेमां पण आधारतंतु कथानो ज रह्यो छे. - जैनकथासाहित्यनी कृतिओने कथानकना कथातत्त्वना स्वरूप--प्रकार प्रमाणे १. पौराणिक २. चरित्रात्मक ३. लोककथात्मक ४. विवरण कथा (जे टीका ग्रंथो, बालावबोधो, कथाकोशमां होय) एवा वर्गमां वहेंची शकीओ. तीर्थंकरोना जीवनने स्पर्शती कथाओ, पौराणिक प्रकारनी गणी शकाय. विलासवती, सुकुमाल, प्रद्युम्नादि, नागकुमार, सुलोचना इत्यादि धर्मख्यात पात्रोनी कथाओ चरित्रात्मक वर्गनी छे. समरादित्य, तरंगवती, वगेरे लोकरंजनात्मक कथाओना वर्गनी छे. कथाकोश, बालावबोध वगेरेमां आवा दरेक प्रकारनी कथाओ संक्षेपमां अने सरळ भाषामां आपवामां आवे छे. १.१.३ अन्य धर्मोनुं कथासाहित्य जैनेतर अन्य मुख्य भारतीय धर्मो बे छ : १. वैदिक धर्म २. बौद्ध धर्म १. वैदिकधर्मनु कथासाहित्य वैदिक धर्म, ब्राह्मणधर्म, सनातनधर्म के हिंदुधर्मने नामे ओळखातो धर्म परंपरागत अने मुक्त धारा छे. ए कोइ एक व्यक्ति के वादकृत नथी. आथी आ धर्ममां उपास्य देव-देवी प्रमाणे अने व्यक्तिस्थापित वाद अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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