Book Title: Jain Katha Sahitya Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ जैन कथासाहित्य डो. हसु याज्ञिक १. जैनकथासाहित्य : परिचय - महत्त्व व्याख्या : जैन कथा साहित्य एटले जैन धर्ममां गद्यमां अने पद्यमां विविध प्रकारमा अने स्वरूपमा जे कथाओ मळे छे, तेनुं साहित्य. आवी कथाओमां धर्मना सिद्धांतोनुं स्पष्टीकरण करती, मंत्र, तप, शील, संयम, व्रत वगेरेनुं महत्त्व समजावती, धर्मना मुख्य तीर्थंकरोनां जीवननां महत्त्वनां पासांओ पर प्रकाश पाडती, आ धर्म साथे संकळायेला राजाओ, प्रधानो, साधु-साध्वीओ, श्रावक-श्राविकाओ, वगेरेने विषय करती अने धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष ए चार पुरुषार्थ जोडे संकळायेली तेमज विविध घटनाओ अने रसथी मनोरंजन करती रचनाओनो समावेश थाय छे. कथा-वार्ता : 'कथा' शब्दना मूळमां 'कथ' एटले के कहेवू ए धातु छे. कोई पण मानवी के मानवेतर पात्रना जीवनमां बनेली के पछी कल्पेली, विशेष अर्थ अने चमत्कार धरावती घटनाओने कथा कहेवामां आवे छे. कथा साथे बीजो पर्याय 'वार्ता' पण प्रयोजाय छे, ए शब्दना मूळमां 'वृत्त' एटले के 'बनेलं' एवो अर्थ छे. परंतु आ परथी कथा एटले कल्पेखें अने वार्ता एटले बनेलुं कहेQ : एवो अर्थनो भेद नथी. 'कथा' मुख्यत्वे धर्म साथे संकळाती वार्ता माटे प्रयोजाय छे. वार्ता सामान्य रीते मनोरंजन माटेनी चमत्कारमूलक घटनाओनां कथन माटे प्रयोजाय छे. ___ कथा कहेवी अने सांभळवी भारतनी प्राचीनतम परंपरा छे. एना मुख्य बे वर्गो छे : १. धर्म माटेनी २. लोकोना मनोरंजन माटेनी, आ भेद कथाना उपयोगना हेतुनी दृष्टिले छे. कोई कथा एक ज होय परंतु ए धर्मना साहित्यनुं अंग बने छे त्यारे हेतुनी साथे ज एनां रूपमां पण केटलोक फेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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