Book Title: Jain Katha Sahitya Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ August-2004 75 पडे छे. धर्ममां प्रयोजाती मनोरंजक कथानां रूपरंग बदलाय छे. परिचय : विश्वना बधा ज धर्मो पोताना धर्मना मुख्य देव-देवी, तपस्वी, तीर्थ वगेरेना माहात्म्य माटे कथानो आधार लीधो छे तथा दरेक धर्मे पोताना धर्मना तत्त्वज्ञान अने तेना सिद्धांतोने समजाववा माटे कथानुं माध्यम अपनाव्यु छे. जैनधर्ममां पण आ रीते ज कथाओनो उपयोग कर्यो छे. परंतु जैन धर्मनी कथाओनी केटलीक विशेषता छे. विशेषता : जैनधर्मनी प्रथम विशेषता ए छे के एनुं सैद्धांतिक अने कथाश्रयी बन्ने प्रकार, साहित्य मात्र संस्कृतमा ज नथी परंतु अर्धमागधी तथा अन्य प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी मध्यकालीन भाषाओमां छे. तीर्थंकरोए लोकोनी भाषामां ज धर्मनो उपदेश आप्यो अने ए माटे धर्मनी इतिहासमूलक कथाओ उपरांत लोककथाओने पण स्थान आप्यु. आथी लोकोना ज हैयानो जेमां धबकार संभळातो हतो एवी ज कथाओ लोकोनी ज बोलीमां कहेवामां अने लखवामां आवी. संस्कृतमां पण केटलीक कृतिओ रचाई परंतु मुख्य ने मूळभूत माध्यम तो लोकभाषाओर्नु ज रहूं. कथाओ क्या क्या : जैन धर्मना साहित्यमां कथाओ आगममां, एना परना टीका-विवरणोमां मळे छे. अनेक कथाओ विविध प्राकृत भाषाओमां प्रबंध, चरित, महाकाव्य, रासा, पद्यकथा वगेरेमां मळे छे. बारमासी, फागु जेवा साहित्यिक स्वरूपोमां पण मुख्य आधार कोइ मुख्य पात्रोनी मुख्य अने सूचक एवी घटनाओनो ज लेवामां आवे छे. महत्व : जैन कथा साहित्य, अनेक रीते महत्त्व छे. एमां मुख्य : १. भारतनुं प्राचीन अने मध्यकालीन साहित्य जैनकथासाहित्ये हस्तप्रतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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