Book Title: Jain Katha Sahitya Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ 76 अनुसंधान-२९ लिखितरूपमां जाळव्युं छे. काळना प्रवाहमां अने विधर्मी आक्रमणोमां भारतनी प्राचीन-मध्यकालीन कथाओनी रचनाओ नाश पामी. परंतु जैनधर्ममां आवी कृतिओ हस्तप्रतना लिखित दस्तावेजी रूपमां रही. भारतमा ज नहीं परंतु विश्वमां पण अन्यत्र आवो आटलो प्राचीनमध्यकालीन कथा साहित्यनो वारसो जैन सिवाय बीजे क्यांय जळवायो नथी. कोइ पण कथा केटली जूनामां जूनी छे, ए जाणीने निर्णय करवो होय त्यारे आ जैनसाहित्य ज दस्तावेजीरूपनो आधार छे. २. एमां मात्र जैनधर्मने स्पर्शती ज बाबतो नथी परंत भारतीय आर्योनी संस्कृतिनो पांचहजार वर्षनो इतिहास पण छे. आ कथाओने आधारे ज छेल्लां पांच हजार वर्षना भारतीय समाजनी राजकीय, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक गतिविधि जाणी शकीले छीओ. कया काळे केवी सामाजिक स्थिति हती, केवां-केटलां राजकीयादि परिवर्तनो थयां, प्रजा पर एनी केवी असर पडी, समाजमां केवा, केटला, कया कया वर्गों हता : आवां बधां ज पासांओ पर जैनकथासाहित्य प्रकाश पाडे छे. कोइ पण कला के कोइ पण विद्या विशे जाणवू होय, शिल्प, स्थापत्य, चित्र, साहित्य, संगीत, नाटक, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अस्त्रशस्त्रकला, चित्र, साहित्य, संगीत, नाटक, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अस्त्रशस्त्रकला, अंगविद्या, रसायण : आवा कोइ पण अंगनो छेल्ला पांच हजार वर्षनो भारतीय इतिहास जाणवो होय तो पण पूरती ने दस्तावेजी सामग्री जैनकथासाहित्य पूरी पाडे छे. ३. भारतभरनी अने विश्वभरनी हजारो लोककथाओनां कुळमूळ जाणवां होय तो ते माटेनी बधी ज दस्तावेजी सामग्री पण जैनकथासाहित्य पूरी पाडे ४. धर्मना मूळभूत तत्त्वज्ञान-सिद्धांत समजावे छे. ५. तीर्थंकरो, साधु-साध्वीओ, स्थापत्यो, राजवीओ, अमात्यो, श्रेष्ठिओ, दानवीरो, मुख्य श्रावक-श्राविकाओनां चरित अने जीवनकार्यनी वीगतो पूरी पाडे छे. ६. आ धर्मना उद्भव-विकासनो तो इतिहास आपे छे अने केवी, कइ-कइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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