Book Title: Jain Katha Sahitya
Author(s): Hasu Yagnik
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन कथासाहित्य डो. हसु याज्ञिक १. जैनकथासाहित्य : परिचय - महत्त्व व्याख्या : जैन कथा साहित्य एटले जैन धर्ममां गद्यमां अने पद्यमां विविध प्रकारमा अने स्वरूपमा जे कथाओ मळे छे, तेनुं साहित्य. आवी कथाओमां धर्मना सिद्धांतोनुं स्पष्टीकरण करती, मंत्र, तप, शील, संयम, व्रत वगेरेनुं महत्त्व समजावती, धर्मना मुख्य तीर्थंकरोनां जीवननां महत्त्वनां पासांओ पर प्रकाश पाडती, आ धर्म साथे संकळायेला राजाओ, प्रधानो, साधु-साध्वीओ, श्रावक-श्राविकाओ, वगेरेने विषय करती अने धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष ए चार पुरुषार्थ जोडे संकळायेली तेमज विविध घटनाओ अने रसथी मनोरंजन करती रचनाओनो समावेश थाय छे. कथा-वार्ता : 'कथा' शब्दना मूळमां 'कथ' एटले के कहेवू ए धातु छे. कोई पण मानवी के मानवेतर पात्रना जीवनमां बनेली के पछी कल्पेली, विशेष अर्थ अने चमत्कार धरावती घटनाओने कथा कहेवामां आवे छे. कथा साथे बीजो पर्याय 'वार्ता' पण प्रयोजाय छे, ए शब्दना मूळमां 'वृत्त' एटले के 'बनेलं' एवो अर्थ छे. परंतु आ परथी कथा एटले कल्पेखें अने वार्ता एटले बनेलुं कहेQ : एवो अर्थनो भेद नथी. 'कथा' मुख्यत्वे धर्म साथे संकळाती वार्ता माटे प्रयोजाय छे. वार्ता सामान्य रीते मनोरंजन माटेनी चमत्कारमूलक घटनाओनां कथन माटे प्रयोजाय छे. ___ कथा कहेवी अने सांभळवी भारतनी प्राचीनतम परंपरा छे. एना मुख्य बे वर्गो छे : १. धर्म माटेनी २. लोकोना मनोरंजन माटेनी, आ भेद कथाना उपयोगना हेतुनी दृष्टिले छे. कोई कथा एक ज होय परंतु ए धर्मना साहित्यनुं अंग बने छे त्यारे हेतुनी साथे ज एनां रूपमां पण केटलोक फेर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 75 पडे छे. धर्ममां प्रयोजाती मनोरंजक कथानां रूपरंग बदलाय छे. परिचय : विश्वना बधा ज धर्मो पोताना धर्मना मुख्य देव-देवी, तपस्वी, तीर्थ वगेरेना माहात्म्य माटे कथानो आधार लीधो छे तथा दरेक धर्मे पोताना धर्मना तत्त्वज्ञान अने तेना सिद्धांतोने समजाववा माटे कथानुं माध्यम अपनाव्यु छे. जैनधर्ममां पण आ रीते ज कथाओनो उपयोग कर्यो छे. परंतु जैन धर्मनी कथाओनी केटलीक विशेषता छे. विशेषता : जैनधर्मनी प्रथम विशेषता ए छे के एनुं सैद्धांतिक अने कथाश्रयी बन्ने प्रकार, साहित्य मात्र संस्कृतमा ज नथी परंतु अर्धमागधी तथा अन्य प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी मध्यकालीन भाषाओमां छे. तीर्थंकरोए लोकोनी भाषामां ज धर्मनो उपदेश आप्यो अने ए माटे धर्मनी इतिहासमूलक कथाओ उपरांत लोककथाओने पण स्थान आप्यु. आथी लोकोना ज हैयानो जेमां धबकार संभळातो हतो एवी ज कथाओ लोकोनी ज बोलीमां कहेवामां अने लखवामां आवी. संस्कृतमां पण केटलीक कृतिओ रचाई परंतु मुख्य ने मूळभूत माध्यम तो लोकभाषाओर्नु ज रहूं. कथाओ क्या क्या : जैन धर्मना साहित्यमां कथाओ आगममां, एना परना टीका-विवरणोमां मळे छे. अनेक कथाओ विविध प्राकृत भाषाओमां प्रबंध, चरित, महाकाव्य, रासा, पद्यकथा वगेरेमां मळे छे. बारमासी, फागु जेवा साहित्यिक स्वरूपोमां पण मुख्य आधार कोइ मुख्य पात्रोनी मुख्य अने सूचक एवी घटनाओनो ज लेवामां आवे छे. महत्व : जैन कथा साहित्य, अनेक रीते महत्त्व छे. एमां मुख्य : १. भारतनुं प्राचीन अने मध्यकालीन साहित्य जैनकथासाहित्ये हस्तप्रतना Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 अनुसंधान-२९ लिखितरूपमां जाळव्युं छे. काळना प्रवाहमां अने विधर्मी आक्रमणोमां भारतनी प्राचीन-मध्यकालीन कथाओनी रचनाओ नाश पामी. परंतु जैनधर्ममां आवी कृतिओ हस्तप्रतना लिखित दस्तावेजी रूपमां रही. भारतमा ज नहीं परंतु विश्वमां पण अन्यत्र आवो आटलो प्राचीनमध्यकालीन कथा साहित्यनो वारसो जैन सिवाय बीजे क्यांय जळवायो नथी. कोइ पण कथा केटली जूनामां जूनी छे, ए जाणीने निर्णय करवो होय त्यारे आ जैनसाहित्य ज दस्तावेजीरूपनो आधार छे. २. एमां मात्र जैनधर्मने स्पर्शती ज बाबतो नथी परंत भारतीय आर्योनी संस्कृतिनो पांचहजार वर्षनो इतिहास पण छे. आ कथाओने आधारे ज छेल्लां पांच हजार वर्षना भारतीय समाजनी राजकीय, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक गतिविधि जाणी शकीले छीओ. कया काळे केवी सामाजिक स्थिति हती, केवां-केटलां राजकीयादि परिवर्तनो थयां, प्रजा पर एनी केवी असर पडी, समाजमां केवा, केटला, कया कया वर्गों हता : आवां बधां ज पासांओ पर जैनकथासाहित्य प्रकाश पाडे छे. कोइ पण कला के कोइ पण विद्या विशे जाणवू होय, शिल्प, स्थापत्य, चित्र, साहित्य, संगीत, नाटक, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अस्त्रशस्त्रकला, चित्र, साहित्य, संगीत, नाटक, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अस्त्रशस्त्रकला, अंगविद्या, रसायण : आवा कोइ पण अंगनो छेल्ला पांच हजार वर्षनो भारतीय इतिहास जाणवो होय तो पण पूरती ने दस्तावेजी सामग्री जैनकथासाहित्य पूरी पाडे छे. ३. भारतभरनी अने विश्वभरनी हजारो लोककथाओनां कुळमूळ जाणवां होय तो ते माटेनी बधी ज दस्तावेजी सामग्री पण जैनकथासाहित्य पूरी पाडे ४. धर्मना मूळभूत तत्त्वज्ञान-सिद्धांत समजावे छे. ५. तीर्थंकरो, साधु-साध्वीओ, स्थापत्यो, राजवीओ, अमात्यो, श्रेष्ठिओ, दानवीरो, मुख्य श्रावक-श्राविकाओनां चरित अने जीवनकार्यनी वीगतो पूरी पाडे छे. ६. आ धर्मना उद्भव-विकासनो तो इतिहास आपे छे अने केवी, कइ-कइ, Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 77 केटकेटली अनुकूळताओ - प्रतिकूळताओ वच्चे आ मानवधर्म स्थिर थयो, तेनुं चित्र स्पष्ट करे छे ते साथे ज भारतीय मूळना प्राचीन वेदधर्म अने बौद्ध धर्म पर पण प्रकाश पाडे छे. भारतीय मूळना धर्मो वच्चे जे संघर्ष अने समन्वय थयां, तेनो निर्देश पण मळे छे. १.१.२ जैन कथासाहित्य- मूळ जैन कथासाहित्य- मूळ प्राचीनतम छे. ईसवी संवतना आरंभ पहेलाना : त्रण हजार अने पछीना बे हजार : आम आ परंपरा पांच हजार वर्ष जेटली प्राचीन होवानुं तो पश्चिमना विद्वानो पण स्वीकारे छे. भारतीय मत प्रमाणे आ परंपरा एथी पण जूनी छे. मूळ : आ कथासाहित्यना मूळने जाणवा माटे एनी कथाओ क्यारे, केवी रीते, क्या क्या उद्भवी छे, ते जाणवू पडे. आ दृष्टिले आ कथासाहित्यनां मुख्य मूळ बे छे : १. जैन अने २. समग्र भारतीय अर्थात् केटलीक कथाओ एवी छे, जे धर्मना ज उद्भव-विकासनी साथे आ क्षेत्रमा ज जन्मी अने प्रचारमा आवी. बीजा वर्गनी जे कथाओ छे ते भारतनी एक समान अने मुख्य के सर्वसाधारण धारा छे तेमांथी जैन कथासाहित्यमां आवी छ : १. तीर्थंकरो, तीर्थो, जैनस्थापत्यो, जैनधर्म साथे परोक्ष रीते जेमनो संबंध रह्यो एवां राजवंशो, मंत्रीओ, श्रेष्ठिओ, साधु-साध्वीओ, श्रावकश्राविकाओ, जैनधर्मनां मुख्य सिद्धांतो, 'तत्त्वो, व्रतो, मंत्रो वगेरे साथे संकळायेली कथा : आ वर्गनी बधी ज कथाओना उद्गम-विकास जैनधर्मना ज पोतिका के अंगभूत एवा प्रवाहमां थयो छे. २. उपरना वर्गमा जेनो समावेश नथी थतो तेवी बोधक-उपदेशक दृष्टांतमूलक कथाओ, मनोरंजनात्मक लोककथाओ : भारतीय समग्र अने सर्वसामान्य धारामांथी आवी छे. वैदिक धर्म अने बौद्ध धर्ममां पण आ सामान्य धारानी कथाओ आवी छे. आ कोमन-स्ट्रीममांथी त्रण प्रकारनी कथाओ जैन कथा साहित्यमां Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 अनुसंधान-२९ आवी : १. पुराकथारूप Mythological २. दंतकथात्मक Legendary Tale ३. मनोरंजक लोककथात्मक रामकथा, कृष्णकथा अने पांडवकथा : आ त्रण भारतीय समान धारानी त्रण मुख्य पुराकथाओ छे. एनो उद्भव-विकास सर्वसामान्य एवी लोकधारामां थयो. एमाथी आ कथाओ वैदिक, बौद्ध अने जैन ए त्रण भारतीय मूळना आर्यधर्मोमां प्रयोजाइ अने दरेक धर्ममां ते केटलाक भेद साथे, पोतानी रीते विकसी. भारतीय वैदिक धर्मना केटलाक संप्रदायमां अवतार-वाद मुख्य बन्यो अने राम तथा कृष्ण भगवान विष्णुना अवतारो मनाया अने पूजाया. बौद्ध अने जैन धर्मो अवतार-वाद स्वीकारता नथी एथी एमां केटलांक रूपान्तर थयां अने पुराणकथा के पुराकथा Myth ने बदले दंतकथा Legend जेवू रूप बंधायु. परंतु आ कथा अने पात्रोने सीधो संबंध जैनधर्म साथे पण रह्यो एथी एनां स्थान-महत्त्व पौराणिककथा तरीके जळवाया. जैन स्रोतनी रामकथा पद्मचरित । पद्मपुराणमां छे. कृष्णकथा प्राकृत 'वसुदेव-हिंडी'मां छे. आ प्रवाह ज पछी आगळ चाले छे अने तेना पर चरित, रासा वगेरे रूपमां अनेक रचनाओ थई छे. बीजो प्रवाह दंतकथानो छे. एमां उदयन-वासवदत्ता, श्रेणीक, अभयकुमार, विक्रमादित्य वगेरेनो समावेश थाय छे. बीजो प्रवाह मनोरंजक लोककथाओनो छे. दंतकथानो वीरविक्रम एटलो लोकप्रिय बन्यो के अने आधारे विक्रम अने शनिश्चर, विक्रम अने वेताळ, एवी अनेक कथाओ जन्मी. पंचदंड, सिंहसनबत्रीसी जेवी कृतिओ रचाइ. इसुनी चोथी-छठी सदीथी उदयन-वासवदत्तानी कथाओ भारतमां लोकप्रिय बनी चूकी हती. अने दशमी-बारमी सदीथी ते छेक अढारमी सदी सुधीमां विक्रमकथा भारतभरमां लोकप्रिय रही. एना पर अनेक कृतिओ रचाइ. नंदबत्रीसी, सूडो बहोंतेरी पण एवी ज लोकप्रिय कथाओ हती. प्राचीन अने मध्यकालीन समयनी आ बधी ज कथाओ जैनकथासाहित्यमा स्थान Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 79 पामी एटलुं ज नहीं परंतु जैन प्रवाहमां पण एनां अवनवां रूपो बंधाया. समय-समये आ कथाओ रूपांतर पामती रही अने एना परनी बहुसंख्य रचनाओ थइ. "सूडाबहोंतेरी'ने अन्य कामकथाओ तो जैनस्रोतमां ज उद्भवी अने विकसी छे. संसारनी असारता दर्शाववा अने विषयासक्तिथी मन दूर रहे ए माटे जैन यतिओ द्वारा आ प्रकारनी कथाओ लखवामां आवी. रूपकग्रन्थि वाळी कथाओ पण सामान्य स्रोतनी छे. मन, शरीर, आत्मा वगेरेने रूपक द्वारा संवाद रूपे कथाओ रजू करे छे. तन रेटियो छे के आत्मा माटे तो भाडाना मकान जेवू छे : आ भारतीय तत्त्वज्ञानलोकस्वीकृत एवं रूपक छे. आने विषय करीने दरेक भारतीय धर्ममा अनेक कथाओ छे. जैनकथासाहित्यमां आवी अनेक चोटदार, मर्मस्पर्शी कथाओनां रूप बंधायां अने तेना पर दृष्टांतथी मांडीने ते प्रबंध सुधीनी रचना थइ. धर्म-धर्म वच्चेना मान्यताभेद, मतभेद अने मनभेदनी असर दरेक धर्मना कथासाहित्य पर पडी छे. आ प्रकारमा अनेक कथाओ रचाइ एमाथी ज प्रवल्हिका अने मंथलिका जेवा वार्ता प्रकारो अस्तित्वमां आव्या. प्रारब्ध चडे के पुरुषार्थ : ए वाद पर विविध कथाओ छे. अन्य धर्मो अने मान्यताओ पर हास्यकटाक्ष अने उपहास करती कथाओ, स्वरूप सामान्य स्रोतनुं छे, परंतु एमांथी कटाक्षसभर धूर्ताख्यान अने भरडाबत्रीसी-भरटक द्वात्रिंशिका-अने विनोदकथासंग्रह जेवी कृतिओ तो जैन कथासाहित्यमां ज रचाइ अने जळवाइ छे. जैनकथानां मूळ : जैन कथासाहित्यनां प्राचीनतम मूळ आगममा छे. अर्धमागधीमां अहीं धर्मना तत्त्वज्ञाननी साथे ज कथाओ पण मळे छे. आगमना वीजा चूळामां मळती महावीर प्रभुना जीवननी कथा, पांचमा अंगनी भगवतीविवाह पण्णत्ति, छठ्ठा अंगमां महावीरस्वामीना मुखे कहेवाती नायाधम्मकहा वगेरे इसवीसन पूर्वेनी प्राचीनतम जैनकथाओ छे. एमां दृष्टांतकथा, रूपककथा, साहसशौर्यकथा, परीकथा, चोर-लूटारा कथा, पुराणकथा अम अनेक प्रकारो जोवा मळे छे. आगमना सातमा, आठमा अने अगियारमा ए त्रण अंगनुं Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 अनुसंधान-२९ जैनकथासाहित्यना उद्गम-विकासनी दृष्टिले महत्त्व छे. सातमा अंगमां महावीरनी धर्मदेशनाथी ध्यान अने तपथी मोक्षदशा प्राप्त करनारनी कथा छे. आ कथाओमां देहना असह्य दुःखदर्दोने तपस्वीओ स्वेच्छाओ हसता मुखे सहन करे छे. आत्मतत्त्वनी प्रतीति अने देहभावथी मुक्ति ते शुं छे, ते आवी कथाओथी प्रगट थाय छे. आगमसाहित्य पछीनो कथासाहित्यनो बीजो तबक्को चरित अने प्रबंधोनो छे. आमां प्राकृत, अपभ्रंश उपरांत संस्कृत भाषामां पण रचायेली कृतिओ मळे छे. पछीना त्रीजा तबक्कामां तो छेक ओगणीसमी सदीना अंतभाग सुधी जैन कथासाहित्यमां अनेक कृतिओ रचाइ. आवी कृतिनी कथा मुख्यत्वे रासरूपे छे. बारमासी, फागु वगेरेमां पण आधारतंतु कथानो ज रह्यो छे. - जैनकथासाहित्यनी कृतिओने कथानकना कथातत्त्वना स्वरूप--प्रकार प्रमाणे १. पौराणिक २. चरित्रात्मक ३. लोककथात्मक ४. विवरण कथा (जे टीका ग्रंथो, बालावबोधो, कथाकोशमां होय) एवा वर्गमां वहेंची शकीओ. तीर्थंकरोना जीवनने स्पर्शती कथाओ, पौराणिक प्रकारनी गणी शकाय. विलासवती, सुकुमाल, प्रद्युम्नादि, नागकुमार, सुलोचना इत्यादि धर्मख्यात पात्रोनी कथाओ चरित्रात्मक वर्गनी छे. समरादित्य, तरंगवती, वगेरे लोकरंजनात्मक कथाओना वर्गनी छे. कथाकोश, बालावबोध वगेरेमां आवा दरेक प्रकारनी कथाओ संक्षेपमां अने सरळ भाषामां आपवामां आवे छे. १.१.३ अन्य धर्मोनुं कथासाहित्य जैनेतर अन्य मुख्य भारतीय धर्मो बे छ : १. वैदिक धर्म २. बौद्ध धर्म १. वैदिकधर्मनु कथासाहित्य वैदिक धर्म, ब्राह्मणधर्म, सनातनधर्म के हिंदुधर्मने नामे ओळखातो धर्म परंपरागत अने मुक्त धारा छे. ए कोइ एक व्यक्ति के वादकृत नथी. आथी आ धर्ममां उपास्य देव-देवी प्रमाणे अने व्यक्तिस्थापित वाद अने Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 उपासनाने कारणे विविध धर्मसंप्रदायो अस्तित्वमां आव्या. आ उपरांत भारतमां ज वसवाट करनारी मूळभुत केटलीक जातिओना धर्मो पण वैदिक धर्ममां काळक्रमे जोडाया अने एमांथी पण केटलाक संप्रदायो अस्तित्वमां आव्या. देव - देवी प्रमाणे वैष्णव, शैव अने शाक्त : अर्थात् विष्णुपूजक, शिवपूजक अने देवीपूजक एम त्रण मुख्य संप्रदाय छे. चोथो वर्ग निर्गुण उपासकोनो छे अने तेमां पण कोइ अवतारी के पयगंबरी मनाता मुख्य धर्मपुरुष प्रमाणे जुदा जुदा पंथ छे. वैष्णवमांथी ज व्यक्तिस्थापित संप्रदायना रूपमा पुष्टिसंप्रदाय अने स्वामिनारायण संप्रदाय अस्तित्वमां आव्या. शैवमां पाशुपत, लकुलीश वगैरे अनेक संप्रदाय छे. तांत्रिक, मांत्रिक, कापालिक, वामपंथी, अघोरी वगेरे उपासना पद्धतिना पंथो पण काळक्रमे शैव साथै संकळाया. पार्वती साथै ज भारतनी विविध जातिओनी देवीभक्ति शैवमां समावेश पामी. शिवजीना परिवारना गणेश साथे गाणपत्य संकळाया. पशुपूजा, प्रेतपूजा, सूर्यपूजा, नंदिपूजा वगेरेना पेटा अनेक धर्मो पण शैव साथै संकळाया. निर्गुणधारामां पण विविध व्यक्तिस्थापित अनेक पंथो-संप्रदायो छे. 81 आ बधानो समावेश वैदिक धर्मना विविध संप्रदायना रूपमा थाय छे. आम आ महावटवृक्ष छे, जेने अनेक शाखा अने शाखामूळ साथे अनेक जुदा थड पण छे. परंतु ए सहु पोतपोतानी मूळभूत आस्था साथे वेदने स्वीकारे छे. स्वाभाविक छे के आ महावटवृक्षनुं कथासाहित्य प्राचीनतम, विपुल, विशाळ अने वैविध्यसभर होय, एमां संस्कृत - प्राकृत उपरांत बधी ज भारतीय भाषाओमां रचायेलुं कथासाहित्य छे. आ परंपरा पण पांचेक हजार वर्षनी प्राचीनता धरावती होवानुं पश्चिमना विद्वानो स्वीकारे छे, भारतीय मत प्रमाणे ए आथी पण प्राचीनतम छे. आ धर्ममां १. वेद २. वेदोत्तर साहित्य ३. वीरगाथा ४. पुराण ५. प्रशिष्ट महाकाव्य काळ एवा समयना चार-पांच तबक्काना युगो छे. वेदमां ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद अने सामवेद ए चार छे. ऋग्वेद प्राचीनतम छे. एना दश मंडळमां यम-यमी अने पुरुरवा - उर्वशी जेवी प्रख्यात कथाओ छे. वेदना मंत्रो अने सूक्तोमां अनेक कथाओ अने पात्रोनो निर्देश थयो छे. एनी सवीगत कथाओ वेदोत्तर साहित्यमां मळे छे. उपनिषद, Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 अनुसंधान-२९ ब्राह्मणग्रंथ, आरण्यक वगेरे वेदसंलग्न छे अने एमां अनेक कथाओ छे. ऐतरेय ब्राह्मण : ७-१३.१८मां शुनःशेपनी, शतपथ ब्राह्मण १-४.५ अने ८.१२मां मन अने वाणी वच्चेना विवादनी कथा : आम अनेक कथाओ मळे छे. उपनिषदमां भारतीय तत्त्वज्ञान साथे ब्रह्म, आत्मा, माया वगेरेने स्पष्ट करती कथाओ छे. प्राणी कथा तो वेदमां पण छे. छांदोग्य उपनिषदमां भोजन माटे भसी शके एवा कूतरानी शोधनी, हंसो वच्चेना संवादथी आकर्षाता रेंकवनी, वृषभ, हंस वगेरे द्वारा उपदेश प्राप्त करता सत्यकामनी कथा छे. वेदोत्तर साहित्य पछीना कथा साहित्यना सर्वोत्तम शृंग रामायण अने महाभारत छे. प्राचीन साहित्यनो आ बीजो तबको प्रो. मेकडोनल इ.स.पू. ५०० थी इ.स.पू. ५०ना वर्षनो जणावे छे. वीरचरितकाळमां कुबेर, गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी, पार्वती जेवां नवां देवदेवीओनी कथाओ मळे छे अने नाग, यक्ष, गंधर्व, राक्षस जेवां मानवेतर पात्रोनो कथामा प्रवेश थाय छे. भारतीय संस्कृतिना आत्मा जेवा रामायण अने महाभारतनी कथाओ भारतीय आर्योना संघर्ष अने समन्वयनो कथा द्वारा इतिहास आपे छे. महाभारतमा वेदव्यास कुरुवंशनी कथा साथे पांडव-कौरवना भीषण युद्धनी कथा आपे छे. गीता जेवो तत्त्वज्ञाननो उत्तम ग्रन्थ आ कथामां मळ्यो छे. रामायणकथा द्वारा वाल्मीकि उत्तम आदर्श राज्य, राजवी, दंपती अने कुटुंब- चित्र आपे छे. देश-विदेशनी अनेक जातिओ अने तेमनी भाषाओमां रामकथा पहोंचे छे. पुराणसाहित्यमां देवदेवीओना माहात्म्यनी साथे ज अनेक ऋषीमुनीओ, राजवीओनी कथा मळे छे. विपुलसंख्यामां लोककथाओ पुराणोमां मळे छे. आ पुराणोनुं साहित्य भारतीय आर्योना सामाजिक, राजकीय, सांस्कृतिक इतिहासनी सामग्री पूरी पाडे छे. प्रशिष्ट संस्कृतना गाळामां कथा निमित्ते उत्तम महाकाव्यो अने नाटको मळे छे. 'कादंबरी' जेवी उत्तम कथा, दशकुमारचरित, पंचदंड, हितोपदेश, कथासरित्सागर जेवा कथाना आकरग्रन्थो पण आ धारामां मळ्या छे. २. बौद्ध साहित्य प्राचीन परंपरा धरावता बौद्ध साहित्य, कथासाहित्य १. पिटक २. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 जातक अने ३. अवदानमां मळे छे. १. पिटक : धर्मतत्त्वने सरळ अने सर्वगम्य बनाववा माटे बौद्ध धर्ममां लोकभाषामां कथाओ कहेवाइ अने लिखितरूपमां पालि भाषामां संग्रह रूप पामी. आ धर्मना सारिपुत्त मोग्गल्लान, महाप्रजापति, उपालि, जीवक वगेरेनी कथा पिटकर्मा मळे छे. भगवान बुद्ध धर्मसिद्धांत समजावी उपदेश आप्यो, तेनी कथा विनय पिटकमां छे. जातक अने पिटकनी कथाओ वच्चेनो महत्त्वनो भेद ए छे के आ बन्नेमां आवती कथाओ बुद्ध द्वारा कहेवाती दर्शाववामां आवी छे, परंतु जातकनी बधी ज कथाओने बुद्धना पूर्वभव साथे सांकळवामां आवी, एवं पिटकमां नथी. आम छतां पिटकनी कथाओ बुद्धना जीवन पर प्रकाश पाडे छे. केटलीक कथाओ संवादमां रजू थई छे. छन्न, अस्सलायन, दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय वगेरे कथाओ तो हकीकतमूलक छे. अंगुलिमाल, रथ्थपाल, मखादेव वगेरे पात्र ने तेमनी कथाओ पिटकमां छे. विमानवत्थु अने पेतवत्थुनी कथाओ सद्कर्मोनां परिणाम दर्शावी कर्मना सिद्धांतने पुष्ट करे छे. केटलांक पात्रो अने घटनाओ कल्पित होवा छतां एमां वास्तविक जीवननी भूमिका जोवा मळे छे. संसारना मोहमांथी मुक्त बनी वैराग्य पामतां पात्रोनी कथाओ पण अहीं छे. प्रख्यात विद्वान विटरनित्झ नोंधे छे के वार्ताना माध्यमे धर्मनो उपदेश देवा- पूर्वे पहेलां जाण्यु. पश्चिम पछी ए मार्गे गयु. धम्मपद अने जातकनी जेम पेतवथ्थु अने विमानवत्थुनी टीकाओ गद्यमां छे. कथाना दृष्टांतथी सिद्धांतनुं स्पष्टीकरण करवामां आवे छे. अहीं दंतकथा Legend पण छे. बौद्ध धर्मनो प्रचार सिलोन अने बीजा विदेशोमां थयो ते साथे भारतनी कथाओ चीन-जापानमां पण पहोंची. विनयपिटक अने सुत्तपिटकमां बुद्धना जीवननी वास्तविक तथा कल्पनामूलक कथाओ छे तेमांथी सुत्तपिटकनी निदाघकथा घडाइ. २. जातक : बुद्धना पूर्वभव साथे संकळायेली कथाओ जातकमां संपादित थई छे. कथाओना वक्ता भगवान बुद्ध पोते छे. अहीं संस्कृति अने समाजना सारभूत तत्त्व जेवी अनेक भारतीय लोककथाओ जातकमां छे. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 अनुसंधान-२९ आवी कथाओ पूर्वभवथी बुद्धना जीवननो संदर्भ धरावती होवाथी लोको धर्मवृत्तिथी आ कथाओ श्रद्धाथी सांभळी अमर बनावी. जातकनी कथाओ मुख्यत्वे गद्यमां छे. कथानो सार अने बोधउपदेश पद्यमां अपाया छे. आ प्राचीन परंपरा छे. ओल्डनबर्ग अने वेबर जेवा कथासाहित्यना विद्वानो जणावे छे के भारतीय कथाओगें मुख्य माध्यम गद्य छे, केटलाक पद्यात्मक अंशो आखे आखो वार्ताने याद राखवा माटे उपयोगी बने छे. जातकमां पद्यनी संख्याने आधारे कथाओ- संपादन करवामां आव्यु छे. कुल बावीस विभागो छे. जेम जेम आ विभागनो क्रम आगळ वधे छे, तेम तेम एमां आवती कथाओमां प्रयोजातां पद्योनी संख्या पण वधे छे... ३. अवदान : अवदान (पालिमां अपदान)नो अर्थ 'नोंधवां जेवां कृत्यो' थाय छे. बौद्ध धर्ममा दीक्षित साधु-साध्वीओनां जीवननी महत्त्वनी घटनाओ पर रचायेली कथाओना संपादनने अवदान कहेवामां आवे छे. जेम बुद्धना जीवन साथे संलग्न कथा ते जातक, तेम बौद्ध थेरा (साधु) अने थेरी (साध्वी)नी जीवन-आधारित कथाओ ते अवदान. थेरागाथामां पंचावन वग्ग (वर्ग) छे अने दरेक वर्गमा १० अवदान छे आम कथासंख्या पांचसोपचास छे. थेरी गाथामां आवा चार वर्ग छे. अहीं साधु-साध्वीओनां जीवननी घटनाओ पात्रना आत्मकथनरूपे आलेखाय छे. सारिपुत्त, मोग्गल्लान, कस्सप वगेरे प्रख्यात थेराना अने महाप्रजापति गोतमी, खेमा, किसा गोतमी प्रख्यात थेरीओ छे. निराशापूर्ण अने आपत्तिभरी जीवननी यातनाओ वेदनाओ वेठ्यां पछी वैराग्य पामतां पात्रोनी अहीं कथा मळे छे. अवदान मुख्यत्वे पालि भाषामां ज लखायेला छे, परंतु दिव्याराधन, जातकमाला, कल्पमंडितिका जेवी बौद्ध कथासाहित्यनी रचनाओ संस्कृतमां पण छे. दिव्यराधननी कथानुं तो इ.स. २६५मां चीनी भाषामां भाषान्तर पण थयुं छे. १.१.४ जैनकथाओ, मनोविज्ञान कथाओना मनोविज्ञानने बे छेडाओथी तपासी शकाय : Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 १. धर्म साथे कथाओ संकळाइ ते पाछळनां मनोवैज्ञानिक कारणो के दृष्टिबिन्दु अने २. धर्मसाहित्यमा आवती कथाओ, मनोविज्ञान, एटले के कथाओनी श्रोताओ पर पडती मनोवैज्ञानिक असर. आ बन्ने पासां परस्पर पूरक छे. १. कथा पाछळ- मनोविज्ञान प्राचीन काळथी ज भारतीय धर्मोओ अने ते पछी विश्वना बीजा पण धर्मो धर्मना प्रचार-प्रसार-स्पष्टीकरण माटे विशेष अने मुख्य आधार कथानो लीधो, धर्मना तत्त्वज्ञान अने तेना सूक्ष्म-संकुल सिद्धांतोने स्पष्ट अने सर्वग्राह्य बनाववा माटे दृष्टांत कथाओनो आश्रय लीधो. नियम, व्रत, जप, पाठ, पूजन-अर्चन वगेरेना प्रभाव अने माहात्म्य माटे पण कथाओनो आधार लीधो. धर्मपंथनी मुख्य व्यक्तिओ अने तेमनां जीवनकार्यने तथा संस्थारूप विविध स्थापत्यो अने पवित्र तीर्थो साथे पण कथाओ सांकळवामां आवी. ____ आम करवा पाछळनुं स्पष्ट कारण ए छे के कथा द्वारा कोई पण सूक्ष्म अने संकुल वात सरळ अने सर्वग्राह्य बने छे. कथा द्वारा श्रोताना मनहदयमां नवी सृष्टि रचाय छे अने तेनी ज कायमी असर पड़े छे. कथा द्वारा धर्मनो अने संस्कृतिनो इतिहास जळवाय छे अने ते अनुयायीने प्रेरणा अने निष्ठा, श्रद्धा आपे छे. आवं कार्य धर्म साथे ज जेने सीधो संबंध छे तेवी धर्मकथा करे छे. परंतु दरेक धर्मपंथोए पोतानां धर्म-परंपरा साथे सीधो संबंध न होय एवी लोकप्रिय अने मनोरंजक लोककथाओनो पण थोडां परिवर्तनो साथे उपयोग कर्यो छे. आनुं कारण ए छे के आ प्रकारनी कथाओ एटली रोचक, चमत्कारयुक्त, प्रभावशाळी अने लोकप्रिय होय छे के धर्मानुयायी वार्ताना रसे पण वक्तव्य-उपदेशादि सांभळे अने तेनी असर ग्रहण करीने एनी धर्मश्रद्धाना संस्कारो दृढ थाय. कथानुं आईं महत्त्वपूर्ण योगदान होवाथी प्रत्येक धर्ममां कथाने अग्र स्थान अने महत्त्व मळ्यां छे. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-२९ २. जैनकथाओगें मनोविज्ञान : जैनधर्ममां पण कथाओ धर्मना तत्त्वज्ञानने स्पष्ट अने सर्वग्राह्य बनाववा प्रयोजाइ. तीर्थंकरो, तीर्थो, व्रत-नियम वगेरेनां प्रभाव अने माहात्म्य माटे पण कथाओनो उपयोग थयो. मनोरंजक लोककथाओ श्रोताओने आकर्षवा अने ए द्वारा ज्ञान-उपदेश आपवा माटे घटतां परिवर्तनो साथे रजू करवामां आवी. आ उपरांत पण एक विशेष अने विशिष्ट शक्ति बौद्ध अने जैन कथाओमां छे. आ बन्ने धर्मनी कथाओमां संसारनी असारता अने वैराग्यवृत्तिना संस्कारो दृढ करवानी शक्ति छे. आ दृष्टिले आ कथाओ विषयलोलुप संसारी जीवोनी मानसिक रीते सारवार करवानी पद्धति छे. मोटा भागना धर्मो माणसनी अज्ञात तत्त्व सामेनी भयवृत्ति अने बधा ज प्रकारनी माणसनी इच्छाओ, आशाओ, आकांक्षाओने संतोषे अने प्रार्थना अने पश्चात्ताप कर्ये बधां ज गुनाओ-पापोनी माफी आपे एवा दयाळु पिता जेवा इश्वरनी कल्पनाथी अनुयायीओने धर्म तरफ आकर्षीने धर्माभिमुख राखवानो मनोवैज्ञानिक अभिगम अपनावे छे. 'ध प्रोडिगाल सन' नी बायबलकथामां एर्नु मूर्त रूप छे. परंतु भारतीय तत्त्वज्ञानमा कर्म अने तेनां फळ के परिणामनो सिद्धांत आथी जूदो ज छे. माणसने, प्राणीमात्रने तेनां कर्मोनां फळ भोगव्ये ज छूटको छे, एमां जप तप पश्चात्तापथी कोई त्रीजी महासत्ताना हस्तक्षेप अने माफीनो स्वीकार नथी. प्राणीमात्रे जाते ज कर्मनां फळ हसते के रडते मुखे भोगववानां ज छे. आ सिद्धांतने कारणे जैनधर्मनी कथाओ क्रमविपाक रूपे जे कंई यातना-कष्टादि पडे ते सहन करवानी ज नहीं, सामे पगले जाते ज ते बधुं वहोरी लेवानी मानसिक शक्ति कथाना माध्यमे माणसने सिद्ध करावी आपे छे.. आथी ज जैनधर्मनी कथाओमां मानसिक अने शारीरिक यातनानां आलेखनो थयां छे. जीवतां सळगावी मूकवामां आव्यां होय, वेगे दोडतां रथनां चक्रो नीचे दबाइ कचडाइने मरतां होय, हिंसक पशुओनां तीणां नहोर अने दांतथी मृत्युना मुखमा होमातां होय, पोताना ज हाथे पोतानां ज शरीर पर सडेला भागोमांथी खरतां कीडांने फरी पोतानां घावना धारां पर मूकीने जाते ज काळी बळतरानी असह्य वेदनानो अनुभव करतां होय एवां पात्रो जैन Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 कथाओमां ज मळशे. अन्य आवां पात्रो अने आलेखनो भाग्ये ज मळशे. आवी कथाओ ज जिजीविषाना प्रबळ उत्कटतम आकर्षणथी मुक्त थवाथी मानसिक शक्ति सिद्ध करी आपे छे. इन्द्रियजन्य उपभोगथी मनने मुक्त करवानी केळवणी पण आवी कथाओ द्वारा मळे छे. देहनो अध्यास छूटे अने देहथी आत्मा भिन्न अने तटस्थ द्रष्टा छे, ए स्थितिना अनुभव माटेनी मानसिक सिद्धि, सज्जता आवी कथाओ आपे छे. संसारना संबंधो मिथ्या छे एवं समुद्रदत्त-समुद्रदत्तानी तेर नातरानी कथा सिद्ध करे छे. एना मिथ्यापणानी प्रतीति करावे छे. संसारना व्यामोहथी मुक्त रहेवाना हेतुअ ज कामकथामां स्खलननां गाढां चित्रो आलेखाया छे. आम एक प्रकारनी मनोवैज्ञानिक सारवार करवानं कार्य आवी कथाओ करे छे. पूरक विगत अने माहिती [१] कथाना प्रकार : १. अग्निपुराण, अध्याय ३३७ प्रमाणे १. आख्यायिका, २. कथा, ३. खंडकथा, ४. परिकथा, ५. कथानक २. हरिभद्राचार्य प्रमाणे १. अर्थकथा २. कामकथा, ३. धर्मकथा अने ४. संकीर्णकथा ३. ध्वन्यालोक (आनंदवर्धन) प्रमाणे : १. परिकथा, २. सकलकथा, ३. खंडकथा, ४. आख्यायिका, ५. कथा काव्यानुशासन (हेमचंद्राचार्य) प्रमाणे कथाना १. उपाख्यान, २. आख्यान, ३. निदर्शन ४. प्रवल्हिका, ५. मन्थल्लिका, ६. मणिकुल्या, ७. परिकथा, ८. खंडकथा, ९. सकलकथा, १०. उपकथा, ११. बृहत्कथा. (विशेष विगत माटे जुओ : मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्य: डो. हसु याज्ञिक, गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर, १९८८, पृ. १७ थी २९) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 अनुसंधान-२९ [२] जैन कथाओ १. कइ कथा कया व्रतादि साथे जोडाई छे तेनो संदर्भ : देवद्रव्यभक्षण : संकास श्रावक अभिग्रह : जीर्णशेठ संक्लिष्टकषाय : अग्निशिख, अरुण मुनि, बाळमुनि श्रावकव्रत : श्रावकपुत्र सदाचार : सुदर्शन शील : शीलवती अणुव्रत : श्रीमति अने सोमा अहिंसा : कुटुंबमारी सत्यव्रत : वहाणवटी ब्रह्मचर्य : पतिमारिका ईर्यासमिति : वरदत्त मुनि भाषासमिति : संगत साधु एषणासमिति : नंदिषेण चोथी समिति : सोमिल मुनि पारिष्ठापनिका समिति : धर्मरुचि पांचमी समिति : नागश्री पुरुषार्थ-प्रारब्ध पर : पुण्यसार-विक्रमसार अप्रमादसेवन : तेलपात्रधारक जातिस्मरण : राजपुत्र भावाभ्यास : नर सुंदरी (विगत माटे : आनंद-हेम-ग्रन्थमाला : पुष्प : १८ प्रा. उपदेशपद महाग्रन्थनो गूर्जर अनुवाद : आ.श्री. हेमसागरसूरि, पं. लालचंद्र भ. गांधी, मुंबई, ई.स. १९७२) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ August-2004 89 २. तीर्थंकरादि गौतमस्वामि नेमिनाथ 'महावीरस्वामी जंबूस्वामी भरतेश्वर-बाहुबली ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती श्रेणिक वसुतेज जयानंदकेवली कुमारपाल पादलिप्त पौराणिक पद्मचरित वसुदेवहिंडी नलदमयंती श्रावकादि कोष्ठशेठ पुष्पचूला शाल-महाशाल-गागली गौतम-पुंडरिक आर्यमहागिरि, सुहस्ति अवंतिसुकुमाल अंगारमर्दक-गोविंदवाचक मेघकुमार पुरोहित पुत्रीओ : रति, बुद्धि, ऋद्धि, गुणसुंदरी शंख-कलावती Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 अनुसंधान-२९ इलाकुमार उत्तमकुमार स्थूलभद्र-रथिक लोककथात्मक मूलदेव-शशधर नंद-सुंदरी अंबड विद्याधर चंडप्रद्योत-मृगावती-अंगारवती उदयन-वासवदत्ता चंद्रगुप्त-चाणक्य विक्रम, विक्रमचरित, विक्रमसेन, सिंहासनबत्रीशी, वेताळपचीशी, पंचदंड, खापरो चोर, शनिश्चर माधवानल-कामकंदला ढोलामारु आरामशोभा उदयसुंदरी, कर्पूरमंजरी, मलयसुंदरी, रसमंजरी चंदन-मलयागरी, सदेवंत-सावलिंगा, चित्रसेन-पद्मावती हंसावती-वछराज-देवराज देवदत्ता-रतिसेना-वसंतसेना (विशेष विगत : मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य : सं. जयंत कोठारी, कांतिभाई शाह, श्री महावीर जैन विद्यालय मुंबइ, १९९३मां; जैनकथासाहित्य : केटलीक लाक्षणिकता, हसु याज्ञिक : पृ. 20 थी 33) 3, शीतल प्लाझा, लाड सोसा. पासे, वस्त्रापुर-बोडकदेव, अमदावाद-५४