Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ ( ५ ) श्री जैन हितोपदेश भाग श्रीजामां श्रीमद् हेमचंद्राचार्य विरचित शासन नायक वीराधिवीर श्री वर्द्धमान जीनना स्तोत्रनो सारांश, मंगळाचरणरूपे आपीने प्रथम ज्ञानसार सूत्र (अष्टकजी ) ना मूळ श्लोको तेना रहस्यार्थ साथे आपल छे जे एवी तो सरलताथी स्फुटपणे लखायेल छे के साधारण ज्ञानवाळाने पण ते सहज रीते समजमां आवी शके तेम छे पछी वैराग्यसार अने उपदेश रहस्य ए नामना विषयम वैराग्य अने उपदेशमय बावतनो सारो समावेश करवामां आव्यो छे. त्यारपछी आध्यात्मिक विषयनी पुष्टीकारक अध्यात्म गीता, संयम, वत्रीसी, अने क्षमा छत्रीसी कठीन शब्दनी फुटनोट साथ आपी ग्रंथनी समाप्ती करवामां आवी छे. दरेक जैनशाळाना वाळकोने क्रमसर वांचनमाळा चलाववानी आवश्यकता आपणी कोन्फरन्स तरफथी जे स्वीकारवामां आवी छे ते वांचनमाळानी गरज आ पुस्तकनो पहेलेथी क्रमसर अभ्यास करवाथी केटलाक अंशे सरशे - एम अमारु निष्पक्षपात्तपणे मानवुं छे. तेथी तेनो घटतो उपयोग करवा अमे सहु सज्जनोने, साग्रह विज्ञप्ति करीए छीए. d पूज्य मुनिश्रीना प्रयास माटे असे अंतःकरणधी आभार मानवा साथै उक्त ग्रंथरत्ननो लाभ लेइ तेओ साहेवना परिश्रमने सर्व भव्यात्माओ सार्थक करो एम इच्छी अत्र वीरमीए छीए. आ ग्रंथ छपाववाने आश्रयदाता, सद्गृहस्थोनो अंतःकरणथी आभार मानी तेमनुं अनुकरण करवा अन्य धनिकोने नम्रविज्ञप्ती करीए छीए. इतिशम्, ली. प्रसिद्ध कर्त्ता.

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 425