Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 9
________________ . . . . (७) १९ ब्रह्मचर्य सेवन कर .... २० परिग्रह मूर्छानो परिहार कर.... २१ वैराग्य भाव धारण कर .... २२ गुणी जनोनो संग कर .... २३ श्री वीतरागने ओळखी वीतरागर्नु सेवन कर. २४ पात्रापात्रने समजी सुपात्रे दान दे. २५ जरुर जणाय त्यांज जिनालय जयणाथी कराव २६ निर्मळ भावनाओ भाव २७ रात्री भोजननो त्याग कर .... २८ मोह मायाने तजीने विवेक आदर. २९ खोटी ममतानो त्याग कर .... ३० संसार सायरनो पार पामवा प्रयत्न कर ३१ धैर्यने धारण कर. .... ३२ दुःखदायी शोकनो त्याग कर. ३३ मननी मेल दूर कर. .... ३४ मानव देहनी सफलता करी ले. • ३५ प्राणान्ते पण व्रत-भंग करीश नहि ३६ मरण वखते समाधि साचववा खूव लक्ष राखजे .... .... ३७ आ भव परभव संबंधी भोगाशंशा करीश नाहि. ३८ स्वकर्तव्य समजीने स्वपरहित साधवा तत्पर रहे. ३९ पंच परमेष्ठि महामंत्रनुं निरंतर स्मरण कर.... 18-10-10-100

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