Book Title: Jain Hitopadesh Part 2 and 3
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 10
________________ ११७ (८) गर्नु सेवन कर .... ४१ वैराग्य भावथी लक्ष्मी विगेरे क्षणिक पदार्थों नो मोह तनी दे ... ४२ सारभूत एवा सद्विवेकज सेवन कर .... ४३ धर्मरुपी संवल बने तेटलं साथे लइ ले .... ४४ मनुष्य भव फरी फरी मळयो मुश्केल छे एम समजी शीघ्र स्वहित साधि ले .... ११४ ४५ पुरुपार्थ वडेज सर्व कार्य सिद्ध थाय छे माटे पुरुषार्थनेज अंगीकार कर. ....। २ सुमति अने चारित्र राजनो सुखदायक संवाद....१२४थार ५० ३ धर्म रत्ननी प्राप्तिने माटे अवश्य प्राप्त करवा यो ग्य गुणो अथवा धर्मनी खरी कुंची ....१६८यार ४ धर्मनी दश शिक्षा.... ५ परमातम छत्रीशी.... ६ अमृतवेलीनी सझ्झाय श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १ ज्ञानसार सूत्र .... २ वैराग्य सारने उपदेश रहस्य .... ३ अध्यात्म गीता .... ४ क्षमा छत्रीशी .... ५ यति धर्म वत्रीशी.. १८२ . . . . १८५ . . . १८८ ७थी?४० १४० १८६ १९५ १९८

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