Book Title: Jain Ekta ka Prashna Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 16
________________ इससे आगे बढ़कर यह कहना कि उसके कषाय समाप्त ही नहीं होंगे, हमें ऐसा कोई आग्रह नहीं रखना चाहिए । पुन: श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराएँ आज यह मानती हैं कि अभी 82 हजार वर्ष तक तो इस भरतक्षेत्र से कोई मुक्त होनेवाला नहीं है। साथ ही दोनों के अनुसार उन्नीस हजार वर्ष बाद जिनशासन का विच्छेद हो जाना है - अर्थात् दोनों सम्प्रदायों को भी समाप्त हो जाना है। इसका अर्थ यह हुआ कि दोनों सम्प्रदायों के जीवनकाल में यह विवादास्पद घटना घटित ही नहीं होना है तो फिर उस सम्बन्ध में व्यर्थ विवाद क्यों किया जायें। क्या इतना मान लेना पर्याप्त नही है-जो भी राग-द्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठ सकेगा क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषायों को जीत सकेगा, वही मुक्ति का अधिकारी होगा। कहा भी है - 'कषायमुक्ति किलमुक्तिरेव'। केवली कवलाहार का प्रश्न और समाधान श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं में विवाद का तीसरा मुद्दा केवली के आहारविहार से सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से श्वे. परम्परा का मत अधिक युक्तिसंगत लगता है, क्योंकि शरीर के लिए आहार आवश्यक है यदि केवली शरीर-धारी है तो उसके लिए भी आहार आवश्यक है। यद्यपि केवली या सर्वज्ञ को अलौकिक व्यक्तित्व से युक्त मान लेने पर यह बात भी तर्कगम्य लगती है कि उसमें आहार आदि की प्रवृत्ति नही होनी चाहिए क्योंकि आहार, वचन आदि की प्रवृत्तियाँ इच्छापूर्वक होंगी, किन्तु जो वीतराग हैं, अनासक्त हैं, उनकी कोई इच्छा नहीं हो सकती। वे तो शरीर से भी निरपेक्ष है, अत: उनमें शरीर-रक्षण का भी कोई प्रयत्न होगा ऐसा मानना भी उचित नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि श्वेताम्बर आगम-साहित्य में भी केवल भगवती के एक प्रसंग-जो प्रक्षिप्त ही लगता है, को छोड़ कर कहीं ऐसा स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है जिसमें कैवलय की प्राप्ति के पश्चात् महावीर कहीं आहार लेने गये हों या उनके लिए आहार लाया गया हो या उन्होंने आहार ग्रहण किया हो-यह बात श्वेताम्बर परम्परा के लिए भी विचारणीय अवश्य है। आखिर ऐसे उल्लेख क्यों नहीं मिलते? . यद्यपि भावनात्मक एकता की दृष्टि से इस विवाद को हल करना हो तो इतना मान लेना पर्याप्त होगा कि केवली स्वत: आहार आदि की प्राप्ति की इच्छा या प्रयत्न नहीं करता है। वर्तमान सन्दर्भो में इस बात को अधिक महत्त्व देना इसलिए भी उचित नहीं है कि दोनों के अनुसार अगले 82000 वर्ष तक भरतक्षेत्र में कोई केवली नहीं जैन एकता का प्रश्न : १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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