Book Title: Jain Ekta ka Prashna Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 15
________________ आगम ग्रन्थ और युगीन परिस्थितियों को दृष्टिगत रखकर वस्त्र-पात्र सम्बन्धी एक आचार-संहिता प्रस्तुत करे जिसे मान्य कर लिया जाये। स्त्रीमुक्ति का प्रश्न और समाधान श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं का दूसरे विवाद का मुद्दा सवस्त्रमुक्ति या स्त्रीमुक्ति का है। जहाँ तक इस सम्बन्ध में आगमिक मान्यता का प्रश्न है श्वेताम्बर आगम साहित्य इस बात को स्वीकार करता है कि स्त्री और सवस्त्र की मुक्ति सम्भव है। यद्यपि कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों और तत्त्वार्थ की दिगम्बर आचार्यों की टीकाओं में स्त्रीमुक्ति का निषेध है। किन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार दिगम्बर ग्रन्थ मूलाचार और धवला टीका में इसके समर्थक पद्य मिले हैं। यद्यपि इस समस्या का हल इन ग्रन्थों के आधारों पर नहीं खोजा जा सकता, क्योंकि उत्तराध्ययन के एक अपवाद को छोड़कर श्वेताम्बर और दिगम्बर साहित्य के प्राचीनतम अंश प्राय: इस सम्बन्ध में स्पष्टरूप से कुछ भी प्रकाश नहीं डालते हैं, जबकि सम्प्रदाय भेद के बाद रचित परवर्ती साहित्य में दोनों अपने पक्ष की पुष्टि करते हैं। ज्ञाता-धर्म-कथा जिसमें मल्ली का स्त्री तीर्थंकर के रूप में चित्रण है तथा अन्तकृतदशा, जिसमें अनेक स्त्रियों की मुक्ति के उल्लेख हैं, विद्वानों की दृष्टि में संघ-भेद के बाद की रचनाएँ हैं। निष्पक्ष रूप से यदि विचार किया जाये तो बात स्पष्ट है कि बंधन और मुक्ति का प्रश्न आत्मा से सम्बन्धित है, न कि शरीर से । बन्धन और मुक्ति दोनों आत्मा की होती है, शरीर की नहीं । पुनः श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराएँ इस विषय में भी एकमत हैं कि आत्मा स्वरूप: नस्त्री है और न पुरुष। साथ ही आत्मा का बन्धन और मुक्ति राग-द्वेष या कषाय की उपस्थिति और अनुपस्थिति पर निर्भर है-उसका स्त्रीपर्याय से कोई से सीधा सम्बन्ध नहीं है। वस्तुत: जो भी राग-द्वेष की ग्रन्थियों से मुक्त होंगे, जो वीतराग और क्षीण कषाय होंगे, और जो निर्वेद अर्थात् स्त्रीत्वपुरुषत्व की वासना से रहित होंगे, वहीं मुक्त होंगे। मुक्ति का निकटतम कारण राग-द्वेष रूपी कर्म-बीज का नष्ट होना और वीतरागता का प्रकट होना है। अत: यही मानना उपयुक्त होगा कि जो भी वीतराग हो सकेगा वही मुक्त होगा - यहाँ स्त्री का, सवस्त्र मुनि या गृहस्थ का, या अन्य परम्पराओं के वेश धारण करने वालों का राग समाप्त होगा या नहीं, इस विवाद में पड़ना न तो उचित है और न आवश्यक है-जो भी वीतराग एवं निष्कषाय हो सकेगा वह मुक्त हो सकेगा-यदि स्त्री पर्यायधारी आत्मा के कषाय क्षीण हो जायेंगे तो वह मुक्त हो जायेगी, यदि नहीं हो सकेंगे तो नहीं हो सकेगी। जैन एकता का प्रश्न : १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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