Book Title: Jain Ekta ka Prashna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 33
________________ मास वाले वर्ष में 384 दिन होते हैं क्या इसमें 24 दिन की आलोचना शेष रह जाती है ? यह सब विचार युक्तिसंगत नहीं है। इसी प्रकार आगम ग्रन्थों को छोड़कर 15वीं16वीं शताब्दी के आचार्यों के ग्रन्थों को आधार मानकर विवाद करना भी उचित नहीं है, पुन: स्वयं निशीथचूर्णि से अनुसार चतुर्थी अपर्व तिथि है; अतः भाद्र शुक्ला पंचमी - क्षमा पर्व का मूल दिन चुन लिया जावे। शेष दिन उसके आगे हों या पीछे, यह अधिक महत्व नहीं रखता है- सुविधा की दृष्टि से उन पर एक आम सहमति बनाई जा सकती है । भाद्रशुक्ला पंचमी को दिगम्बर परम्परा के अनुसार भी क्षमा दिवस है ही अत: इस दिन पर सम्पूर्ण जैन समाज एक हो सकता है । जहाँ तक क्षय या वृद्धि तिथि का प्रश्न है ' क्षये पूर्वा वृद्धे उत्तरा' के उमास्वाति के सिद्धान्त को मान्य कर लिया जावे | अधिक मास के प्रसंग पर या तो लौकिक पंचांग के अनुसार अधिक मास गौण माना जाये अथवा फिर आगमिक आधार पर आषाढ़ या पौष मास की हो वृद्धि मानी जाये । कुछ सूत्र हैं जिनके आधार पर एकता को साधा जा सकता है । 1. 2. 3. 4. 5. निशीथचूर्णि, 3217 जीवाभिगम - नन्दीश्वर द्वीप वर्णन. भगवती आराधना, गाथा 423. वही गाथा 423 की टीका; पृ. 334. दक्षलाक्षणिक व्रते भाद्रपद मासे शुक्ले श्री पंचमीदिने प्रोषधः कार्यः Jain Education International -व्रततिथिनिर्णय, पृ.24. जैन एकता का प्रश्न : ३२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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