Book Title: Jain Dharm me Tirthankar Ek Vivechan
Author(s): Rameshchandra Gupta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 5
________________ यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म ही स्वीकार किया गया है और उसकी अनेक विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। तीर्थंकर की इन अलौकिकताओं में पंचकल्याण, चौंतीस अतिशय, पैंतीस वचनातिशय आदि महत्त्वपूर्ण हैं, हम अगले पृष्ठों में क्रमशः इनकी चर्चा करेंगे। ७. तीर्थंकर की अलौकिकता जैन - परम्परा में यद्यपि तीर्थंकर को एक मानवीय व्यक्तित्व के रूप में ही स्वीकार किया गया, फिर भी उनके जीवन के साथ क्रमशः अलौकिकताओं को जोड़ा जाता रहा है। जैनपरम्परा के प्राचीनतम ग्रन्थ आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में तीर्थंकर महावीर के जीवनवृत्त के संबंध में कुछ उल्लेख मिलता है किन्तु उसमें उन्हें एक उग्र तपस्वी के रूप में प्रस्तुत किया गया है और उनके जीवन के साथ किसी अलौकिकता को नहीं जोड़ा गया किन्तु उसी ग्रन्थ के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और कल्पसूत्र में महावीर के जीवन के साथ अनेक अलौकिकताएँ जोड़ी गई हैं। तीर्थंकर की माता उनकी गर्भावक्रान्ति के समय श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार १४ और दिगम्बर परम्परा के अनुसार १६ शुभ स्वप्न देखती है। आचारांग में तीर्थंकर के गर्भ कल्याण का उल्लेख मिलता है, फिर भी वह किस प्रकार मनाया जाता है, इसका विशेष विवरण तो टीका ग्रन्थों एवं परवर्ती साहित्य में ही उपलब्ध होता है। यह भी मान्यता है कि तीर्थंकर माता की जिस योनि में विकसित होते हैं, वह योनि अशुभ पदार्थो से रहित होती है। वे अशुचि से रहित निर्मल रूप से ही जन्म लेते हैं तथा देवता उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। तीर्थंकर के जन्म के समय परिवेश शान्त रहता है, सुगन्धित वायु बहने लगती है, पक्षी कलरव करते हैं, उनके जन्म के साथ ही समस्त लोक में प्रकाश व्याप्त हो जाता है आदि। यह भी मान्यता है कि तीर्थंकरों के दीक्षा - महोत्सव और कैवल्य - महोत्सव का सम्पादन भी देवता करते हैं। उनके दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व देवता अपार धनराशि उनके कोषागार में डाल देते हैं और वे प्रतिदिन एक करोड़ बावन लाख स्वर्णमुद्राओं का दान करते हैं। सर्वज्ञता की प्राप्ति के पश्चात् देवता उनके लिए एक विशिष्ट समवसरण ( धर्मसभा - स्थल) बनाते हैं, जिसमें बैठकर वे लोक-कल्याण हेतु धर्ममार्ग का प्रवर्तन करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि अति प्राचीन जैन-ग्रन्थों यथा-आचारांग के प्रथम श्रुत स्कन्ध में महावीर के जीवन के संबंध में किन्हीं अलौकिकताओं की चर्चा नहीं है । सूत्रकृतां की वीर - स्तुति में Jain Education International भी मात्र उनकी कुछ विशेषताओं का चित्रण है२१ किन्तु उन्हें अलौकिक नहीं बताया गया है किन्तु आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और कल्पसूत्र में महावीर एवं कुछ अन्य तीर्थंकरों के जन्मकल्याणक आदि की कुछ अलौकिकताओं के संबंध में सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। फिर परवर्ती आगम-साहित्य तथा कथासाहित्य में तो तीर्थंकर को पूर्णतया लोकोत्तर व्यक्ति बना दिया गया है, जिसकी हम क्रमशः चर्चा करेंगे। (अ) तीर्थंकरों के पंचकल्याणक तीर्थंकर और सामान्यकेवली में जैन- परम्परा जिस आधार पर अन्तर करती है, वह पंचकल्याणक की अवधारणा है। जहाँ तीर्थंकर के पंचकल्याणक महोत्सव होते हैं, वहाँ सामान्यकेवली के पंचकल्याणक महोत्सव नहीं होते २४ । तीर्थंकरों के पंचकल्याणक निम्नांकित हैं १. गर्भकल्याणक - तीर्थंकर जब भी माता के गर्भ में अवतरित होते हैं तब श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार माता १४ और दिगम्बर परम्परा के अनुसार १६ स्वप्न देखती हैं तथा देव और मनुष्य मिलकर उनके गर्भावतरण का महोत्सव मनाते हैं । २५ २. जन्मकल्याणक जैन - मान्यतानुसार जब तीर्थंकर का जन्म होता है, तब स्वर्ग के देव और इन्द्र पृथ्वी पर आकर तीर्थंकर का जन्मकल्याणक महोत्सव मनाते हैं और मेरु पर्वत पर ले जाकर वहाँ उनका जन्माभिषेक करते हैं । २६ ३. दीक्षाकल्याणक - तीर्थंकर के दीक्षाकाल के उपस्थित होने के पूर्व लोकान्तिक देव उनसे प्रव्रज्या लेने की प्रार्थना करते हैं। वे एक वर्ष तक करोड़ों स्वर्णमुद्राओं का दान करते हैं। दीक्षा तिथि के दिन देवेन्द्र अपने देवमंडल के साथ आकर उनका अभिनिष्क्रमण - महोत्सव मनाते हैं। वे विशेष पालकी में आरूढ़ होकर वनखंड की ओर जाते हैं, जहाँ अपने वस्त्राभूषण का त्यागकर तथा पंचमुष्टिलोच कर दीक्षित हो जाते हैं। नियम यह है कि तीर्थंकर स्वयं ही दीक्षित होता है, किसी गुरु के समीप नहीं । २७ 1 ४. कैवल्यकल्याणक - तीर्थंकर जब अपनी साधना द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त करते हैं, उस समय भी स्वर्ग से इन्द्र और देवमंडल आकर कैवल्य - महोत्सव मनाते हैं। उस समय देवता तीर्थंकर की धर्मसभा के लिए समवसरण की रचना करते हैं । २८ morom? 8 þóramónóramérôûd For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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