Book Title: Jain Dharm me Tirthankar Ek Vivechan
Author(s): Rameshchandra Gupta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 13
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म तीर्थंकरों के केवलज्ञान की तिथियों. नक्षत्रों एवं स्थलों को भी के पश्चात् तीर्थंकरों के जीवनवृत्त पर स्वतंत्र रूप से अनेक दिया गया है। २३ तीर्थंकरों को पाह्न में और महावीर को चरितकाव्य लिखे गए हैं, जिनकी चर्चा यहाँ अपेक्षित नहीं है। अपराह्न में ज्ञान प्राप्त हुआ। ऋषन को पुरिमताल में, महावीर को ऋजपालिका नदी के किनारे और शेष ने जिस उद्यान में दगम्बर-आगमन्यन्य दीक्षा ली, उसी में केवल ज्ञान प्राप्त किया। पार्श्व, मल्लि और दिगम्बर-परम्परा के आगम-साहित्य में षटखण्डागम, अरिष्टनेमि को तीन उपवास की तपस्या में, वासुपूज्य को एक कषायपाहुड, मूलाचार, भगवतीआराधना, तिलोयपण्णति एवं उपवास में और शेष तीर्थंकरों को दो उपवास में ज्ञान प्राप्त आचार्य कंदकुंद के ग्रंथ समाहित हैं। इनमें मुख्य रूप से मूलाचार हआ।महावीर ने दूसरे समवसरण में तीर्थ की स्थापना की, और भगवतीआराधना यथाप्रसंग तीर्थंकरों के संबंध में कुछ जबकि शेष तीर्थंकरों ने प्रथम समवसरण में तीर्थ की स्थापना सचनाएँ देते हैं किन्त इनमें सव्यवस्थति रूप से तीर्थंकरों से क.। २४ तीर्थंकरों में से २३ तीर्थंकरों के, जितने गण थे, उतने संबंधित विवरण उपलब्ध नहीं हैं। सर्वप्रथम हमें तिलोयपण्णति ही गणधर भी थे, परन्तु महावीर के गणों की संख्या ९ एवं में तीर्थंकरों की अवधारणा एवं जीवन-संबंधी सचनाएँ मिलती गणों की संख्या ११ थी। इसके अतिरिक्त आवश्यकनियुक्ति हैं। तिलोयपण्णत्ति में तीर्थंकरों के नाम, च्यवनस्थल, पर्वभव, में २८ तीर्थंकरों के माता-पिता के नाम, जन्मभूमि, वर्ण, प्रथम माता-पिता का नाम, जन्मतिथि और नक्षत्र, कुलनाम (धर्मनाथ, शिक्षादाता, प्रथम भिक्षास्थल, छद्मस्थ काल, श्रावक-संख्या, अरहनाथ और कुंथुनाथ - कुरुवंश में, पार्श्वनाथ - उग्रवंश में, कुमार-कल, शरीर की ऊँचाई एवं आयुप्रमाण आदि का भी महावीर - ज्ञातृवंश में, मुनिसुमति एवं नेमिनाथ - यादववंश में विवरण त किया गया है। आवश्यकचूर्णि में नियुक्ति और शेष इक्ष्वाकुवंश में हुए हैं) जन्मकाल, आयु, कुमार-काल, विवरणों के अतिरिक्त महावीर और ऋषभ का जीवनवृत्त भी शरीर की ऊँचाई, वर्ण, राज्यकाल, चिह्न, वैराग्य के कारण, विस्तार से तारित है। दीक्षास्थल, (नेमिनाथ द्वारका और शेष अपने जन्म स्थान), आगमेतर -साहित्य दीक्षातिथि, दीक्षाकाल, दीक्षातप, प्रथम भिक्षा में मिले पदार्थ, श्वेताम्बर परम्परा में २४ तीर्थंकरों के संबंध में विस्तृत छद्मस्थकाल, केवल ज्ञान (तिथि, नक्षत्र और स्थल), समवसरण जानकारी प्रदान वाले आगमेतर ग्रंथों में वसुदेवहिण्डी, विमलसरि का रचनाविन्यास, किसी वृक्ष के नीचे हुए केवल ज्ञान, उत्पन्नत यक्ष-यक्षिणी, कैवल्यकाल, गणधरों की संख्या, साधु-साध्वियों का पउमचरियं, २ क का चउप्पन्नमहापुरिसचरियं और हेमचन्द्र की संख्या, अवधिज्ञानी, केवलज्ञानी और वैकिय ऋद्धिधारक का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र उल्लेखनीय है। इनमें वसुदेवहिण्डी और पउमचरियं व मुख्य विषय तीर्थंकर-चरित्र नहीं है। एवं वादियों की संख्या, प्रमुख आर्यिकाएँ, निर्वाणतिथि, नक्षत्र, स्थल, तीर्थंकरों का शासनकाल, तीर्थंकरों का अन्तराल आदि श्वेताम्बर-पः परा में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त का विस्तृत त्त का विस्तृत का विवरण सुव्यवस्थित रूप से उपलब्ध है। तुलनात्मक दृष्टि मा विवेचन करने वाले ग्रं में चउपन्नमहापुरिसचरियं का महत्त्वपूर्ण । से विचार करने पर तिलोयपण्णति की विवरणशैली स्थान है। शीलांक की यह कृति लगभग ईसा की नवीं शताब्दी आवश्यकनियुक्ति के समान है। इसमें आवश्यकनियुक्ति के आवयन में लिखी गई है। संभवत: ५ लाम्बर-जैन-परम्परा में तीर्थंकरों समान ही तीर्थंकरों के माता-पिता आदि का विवरण मिलता है। का विस्तृत विवरण देने वाला यह प्रथम ग्रंथ है। यद्यपि इसमें यद्यपि यह आवश्यकनियुक्ति की अपेक्षा परवर्ती है। भी मुख्य रूप से तो ऋषभ, शान्ति, मल्लि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर के कथानक विस्तार से वर्णित हैं शेष तीर्थंकरों के पुराण-साहित्य जीवनवत्त तो सामान्यतया एक-दो पृष्ठों में ही समाप्त हो जाते हैं। यद्यपि दिगम्बर-परम्परा में तीर्थंकरों के जीवनवत्त को इसके पश्चात् तीर्थंकरों के जीवनवृत्त का विवरण देने वाले ग्रंथों बताने वाले आगमिक साहित्य का अभाव है किन्त उसमें पराणों में हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र भी महत्त्वपूर्ण माना के रूप में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं. इनमें तीर्थंकरों के जीवनवत्त जाता है। चउप्पन्नमहापुरिसचरियं एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र विस्तार से वर्णित हैं। इन पुराणों में जिनसेन और गुणभद्र की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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