Book Title: Jain Dharm me Tirthankar Ek Vivechan
Author(s): Rameshchandra Gupta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
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- यतीन्द्रसूर स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म हजार , सौ भिक्षुणियाँ थीं, ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है। १५४. राजा शिवि ने कबूतर से पूछा कि वह बाज कौन था? तो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों - मेघरथ राजा कबूतर ने कहा - 'वह बाज साक्षात् इन्द्र थे और मैं अग्नि हूँ। और सर्वार्थसिद्धि विमान में देव बनने का उल्लेख हुआ है। राजन् ! हम दोनों आपकी साधुता देखने के लिए यहाँ आए थे।'
यद्यपि शान्तिनाथ का उल्लेख बौद्ध एवं वैदिक परम्पराओं इन दोनों कथाओं का जब तुलनात्मक दृष्टि से विचार में नहीं मिलता है किन्तु 'मेघरथ' के रूप में इनके पूर्वभव की करते हैं, तो दिखाई देता है कि दोनों में ही जीवहिंसा को पाप कथा हिन्दू-पुराणों में महाराज शिवि के रूप में मिलती है। बताया गया है और अहिंसा के पालन पर जोर दिया गया है। भगवान शान्ति अपने पूर्वभव में राजा मेघरथ थे। उस
यद्यपि इन दोनों कथाओं में कथानायक राजा मेघरथ और राजा समय जब वे ध्यान-चिन्तन में लीन थे, एक भयातुर कपोत
शिवि के नामों में भिन्नता है किन्तु कथा की विषयवस्तु और
प्रयोजन अर्थात प्राणिरक्षा दोनों में समान है। उनकी गोद में गिरकर उनसे अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है। जैसे ही राजा ने उसे अभयदान दिया, उसी समय एक १७. कन्थ बाज उपस्थित होता है और राजा से प्रार्थना करता है कि कपोत मेरा भोज्य है, इसे छोड़ दें क्योंकि मैं बहुत भूखा हूँ।
कुन्थुनाथ को जैन-परम्परा में सत्रहवाँ तीर्थंकर माना गया
है।१५५ इनके पिता का नाम सूर्य, माता का नाम श्री और जन्मस्थान राजा उस बाज से कहते हैं कि उदर-पूर्ति के लिए हिंसा
गजपुर अर्थात् हस्तिनापुर माना गया है।१५६ इनके शरीर की ऊँचाई करना घोर पाप है, अब तुम्हें इस पापसे से विरत रहना चाहिए।
३५ धनुष और वर्ण काञ्चन बताया गया है।१५७ इनको तिलक शरणागत की रक्षा करना मेरा धर्म है। किन्तु बाज पर इस उपदेश
वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या के पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त हुआ का कोई असर नहीं हुआ। अंत में बाज, कबूतर के बराबर माँस
था।१५८ अपनी ९५ हजार वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद इन्होंने मिलने पर कबूतर को छोड़ देने पर राजी हो गया। राजा मेघरथ ।
भी सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।१५९ इनके संघ में ६० ने तराजू के एक पलड़े में कबूतर को और दूसरे पलड़े में अपनी हजार साध एवं ६० हजार ६ सौ साध्वियों के होने का उल्लेख शरीर से मांस के टुकड़ों को रखना शुरू कर दिया। परन्तु कबूतर है।१६० त्रिषष्टिशलाकापरुषचरित्र में इनके दो पर्वभवों - सिंहावह वाला पलड़ा भारी पड़ता रहा, अंत में ज्यों ही राजा उस पलड़े में
रा पड़ता रहा, अत म ज्या हा राजा उस पलड़ म राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख है। बैठने को तत्पर हुए उसी समय एक देव प्रकट हुआ और उनकी प्राणिरक्षा की वृत्ति की प्रशंसा की। कबूतर एवं बाज अदृश्य हो
इनके विषय में अन्य परम्पराओं में कोई उल्लेख नहीं गए। राजा पहले की तरह स्वस्थ हो गए।
मिलता है। इसी तरह की कथा महाभारत के वनपर्व में राजा शिवि १८. अरनाथ की उल्लेखित है। राजा शिवि अपने दिव्य सिंहासन पर बैठे हुए अरनाथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के अट्ठारहवें तीर्थंकर थे, एक कबूतर उनकी गोद में गिरता है और अपने प्राणों की
माने गए हैं।१६९ इनके पिता का नाम सुदर्शन, माता का नाम रक्षा के लिए प्रार्थना करता है - 'महाराज बाज मेरा पीछा कर ।
श्रीदेवी और जन्मस्थान हस्तिनापुर माना गया है।९६२ इनके शरीर रहा है, मैं आपकी शरण में आया हूँ' इतने में बाज भी उपस्थित
की ऊँचाई ३० धनुष और रंग स्वर्णिम बताया गया है।६३ इन्होंने हो जाता है और कहता है कि 'महाराज कपोत मेरा भोज्य है, इसे
जीवन के अंतिम चरण में संन्यास ग्रहण कर तीन वर्ष तक आप मुझे दें राजा ने कपोत देने से मना कर दिया और बदले में अपना माँस देना स्वीकार किया। तराजू के एक पलड़े में
कठोर तपस्या की, तत्पश्चात् सर्वज्ञ बने।१६४ इनको केवलज्ञान कपोत और दूसरे में राजा शिवि अपने दायीं जांघ से माँस काट
आम्र वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ।१६५ अपनी ८४ हजार वर्ष की काटकर रखने लगे, फिर भी कपोत वाला पलड़ा भारी ही पड़ता
आयु पूर्ण कर इन्होंने भी सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त रहा। अत: स्वयं राजा तराजू के पलड़े पर चढ़ गए। ऐसा करने पर
किया।९६६इनकी शिष्य-सम्पदा में ५० हजार साधु एवं ६० हजार तनिक भी उन्हें क्लेश नहीं हुआ। यह देखकर बाज बोल उठा - 'हो ।
साध्वियाँ थीं, ऐसा उल्लेख है।१६७ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में गई कबूतर की रक्षा' और वह अन्तर्धान हो गया।
इनके दो पूर्वभवों - धनपति राजा और महर्द्धिक देव का उल्लेख
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