Book Title: Jain Dharm ka Prasar Author(s): K Rushabhchandra Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 7
________________ १४ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ ही मुनिलोग एक स्थल पर ठहरते थे, परंतु पांचवीं छठीं शती से स्थायी रूपसे कुछ मुनि चैत्यालयों में ठहरने लगे। इस कारण वे चैत्यवासी कहलाये और भ्रमणशील मुनि वनवासी । चैत्यवासियों में आचारशिथिलता आ गयी और धीरे धीरे मंदिरोंमें मठों तथा श्रीपूज्यों और भट्टारकोंकी गद्दियाँ स्थापित हुयी और परिग्रहकी भावनाने जोर पकड़ा। एक स्थान पर ठहरनेका कारण था पठन-पाठन व साहित्यरचना में सुविधा प्राप्त करना । इससे एक लाभ अवश्य हुआ, अनेक शास्त्रभंडार स्थापित हुए। ये शास्त्र-भंडार सारे भारत में फैले हुए हैं, खास तौर से गुजरात, राजस्थान तथा मैसूर में । १५ वीं शती में मूर्तिपूजाविरोधी आन्दोलन शुरू हुआ और श्वेताम्बरोंमें अलग सम्प्रदायोंकी स्थापना हुयी । श्वेताम्बरों में लोंकाशाहने इस मतकी स्थापना की और वह आगे जाकर ढूंढिया और स्थानकवासी संप्रदाय कहलाया । इसमें मंदिरोंके बजाय स्थानक और आगमोंकी विशेष प्रतिष्ठा है। उनको ३२ आगम मान्य हैं तथा अन्य आगमोंको वे स्वीकार नहीं करते १८वीं शती में आचार्य भिक्षुने स्थानकवासी सम्प्रदायसे अलग हो कर तेरापंथी सम्प्रदायकी स्थापना की । । दिगम्बरों में तारण स्वामीने तारण पंथकी स्थापना १६वीं शती में की, जो मूर्तिपूजा का निषेध करता है । अन्य सम्प्रदायोंमें १७वीं शती में तेरा पंथ और १८वीं शती में गुमान पंथकी स्थापना हुयी । उनमें • बीस पंथ और तोटा पंथ भी प्रचलित है। उत्तर भारत में जैन धर्म जैन धर्मकी महावीरके काल तक प्राचीन समय में क्या स्थिति रही तथा आगे किस प्रकार के संभेद हुये उनका वर्णन करनेके पश्चात् अब भारत के विभिन्न प्रदेशों में जैन धर्मका आगामी शतियों में किस प्रकार प्रसार हुआ उसका वर्णन किया जायगा । बिहार बिहार के साथ जैन धर्मका सम्बन्ध इतिहासातीत कालसे रहा है। कई तीर्थकरोंने उसी प्रदेश में जन्म लिया तथा बीस तीर्थंकरोंका निर्वाण सम्मेतशिखर पर हुआ। महावीर के स्थल स्थल पर विहार करने के कारण इस प्रदेशका नाम ही विहार ( बिहार ) हो गया। वहाँसे उड़ीसा में जानेका रास्ता मानभूम और सिंहभूम से था । इन दो प्रदेशोंकी सराक जाति जैन धर्मको अविच्छिन्न परंपराकी द्योतक है। मानभूम के 'पच्छिम ब्राह्मण' अपनेको महावीर के वंशज मानते हैं। वे अपनेको प्राचीनतम आर्योंके वंशज मानते हैं, जिन्होंने अति प्राचीन कालमें इस भूमि पर पैर रखा था। वे वैदिक आर्यों के पूर्व इस तरफ आये थे। मानभूम और सिंहभूम जिलोंमें जैनावशेष काफी संख्या में प्राचीन कालसे ग्यारहवीं शती तक मिलते है । सम्राट खारवेल के कालमें मगध में फिरसे जैन धर्मने जोर पकड़ा था। वह गया के पास बराबर पहाड़ी तक आया था। शहाबाद में सातवीं से नवीं शताब्दी तक के पुरातत्त्व मिलते हैं। राष्ट्रकूटों और चन्देलोंने भी छोटा नागपुर में राज्य करते समय जैनोंके प्रति सहानुभूति रखी थी । ग्यारहवीं शती में राजेन्द्र चोलने बंगाल से लौटते समय मानभूमके जैन मंदिरोंको ध्वस्त किया था। बंगाल महावीरने स्वयं लाढ ( राध - पश्चिमी बंगाल ) में भ्रमण किया था और वहां पर लोगोंने उनको काफी सताया था। पहले यह अनार्य प्रदेश माना जाता था । परंतु महावीरके प्रभावमें आनेके पश्चात् इसे भी आर्य देश माना जाने लगा। प्रथम भद्रबाहुका जन्म कोटिवर्ष (उत्तरी बंगाल) में ही हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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