Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 06 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 7
________________ આદિનાથ ચરિત્ર પદ્ય १७७ ॥ आदीनाथ चरित्र पद्य॥ ( जैनाचार्य जयसिंहसूरी तरफथी मळेलु ) (iis १४ १५५ थी मनुसयान) संघ पंथ चलतहिं अति सोभा, निरखतासहजहोय मन लोभा। रैन होयठहरे मगमाही, अति आनन्द होयतेहिठाही ॥ मस्त हस्तिजिमि संग समाले, तिमि धन साहु संघ में चाले। चलतहिं चलत ग्रीस्मरितुआई, सूक्षम नदी सूख सकुचाई ।। संघपथिक बेठे मग माही, निस्म ऋतु करे तपतबुझाइ । ढाकपलास ताड़ तरु पाता, तोड़ तोड़ सब पवन उडाता॥ ग्रीस्म विगत वर्षाऋतु आई, पवन आय अति धूल उड़ाई। उमड़ घुमड़ घन आये घोरा, तिनहिं देख नचते अति मोरा॥ दामनि दमक रहे घन माही, चमक दिखत ही होत न साही। गरजन सुन सब हिय डर पाही, पुनि बड़ बंद पड़े संघ माही॥ मग में कीचड हो गया, घुटनें फस फस जाय । घुसेकीच रथ चक सब, आगे चल्यो न जाय ॥ सार्थवाह तब मन अनुमाना, अब संघ का नहीं होगा जाना। तबहि विकट बन तंबु तनाये, संघ पथिक कर छान छवाये ।। मणीभद्र एक छान छवाई, कछुक बड़ी अति सुन्दर ताइ । ताहि उपाश्रय कर सब मानी, तहां ठहरे साधूमुनि ज्ञानी ।। कछुक दिवस बीते इहि भाती, सकल संघने रहि विश्रांती। पुनि बीता सब खाद्य अहारा, तब बन फल सब लिया सहारा ॥ क्षुदित होय सब जंगल डोले, कंद मूल फल ढूंडत भोले। संघव्यथा सुन अति दुख पावा, सार्थवाह मूर्छित हो जावा ।। मूर्छितदशानींद आ जावा, पहरानर सुन शब्द सजावा । पहरा नर बोला इमि भांती, फेली अति हि स्वामि कर ख्याती। खुद संकट पा पालत सांथी, यह सुन साहु नीद भगि जाती। करन लगा विचार शुभकारी, है कोइ संघमे अतिहीं दुखारी। , अपूर्णPage Navigation
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