Book Title: Jain Dharm Prakash 1959 Pustak 075 Ank 07
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KEXIKEKEXEXXEXOXEXXEXHXEIX* . श्री महावीरस्वामी स्तवन दुखहर महावीर सुखकर महावीर, - __तुम हो प्रभु वीरण के बीर ॥ टेर॥ त्रिसलामाता रानी का नन्दा, - सिद्धार्थ कुल पूनमचन्दा, - प्रभु अनन्त गुणों की खान ॥१॥ त्रिपदी प्रभू स्वमुख से भाखी, गणधर कीनी है रचना द्वादसांगी, तुम अभावे एहनो है आधार ।। २ ॥ विरोधी जन को प्रभु तुमने तारा,.. . गोसाला और चन्डकोशिक को उगारा, .. प्रभु सम दृष्टि हो आप ॥ ३॥ समवसरण में बैठ के देसना दीनी, . अमृत समान लागे है मीठी. सुनता पाप पलाय ॥४॥ श्रेणिक सुलसा को प्रभु जिनपद दीना, .... कर उपगार आप : समान कीना, ___ हमको भी प्रभु मोटी है आशा ॥ ५॥ वर्तमान शासन प्रभु तुम्हारो, गच्छ कदाग्रहमें फँसायो, कौन साचो कौन झूठो क्योंकर जनियो जाय ।। ६ ।। कलिकाल : अपनो प्रभाव बतावे, - धर्मिजन की हसी उडावे, कहे कि करे पाप और खावे धापं ॥७॥ अन्तसमय प्रभु पावापुर "आवे, अखंड देसना-जल बरसावे, .... बिनय मूल धर्म बतायो आप ॥ ८॥ आप. प्रभु अब जल्दी पधारो, लक्ष्मीचन्द को पार उतारो, 'नित उठ जोउँ बाट ॥९॥ –શ્રીયુત તેજરાજ લક્ષ્મીચંદજી MEExaxsxxx (८२) RAMAHARXXB For Private And Personal Use Only

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