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શ્રી જૈન ધર્મ. પ્રકાશ मिलान कर के करना आवश्यक है । समवायांग और ओपनियुक्ति चर्णि का उल्लेख मिलता है पर प्रतियें प्राप्त नहीं है । यदि इनकी प्रतियें कहीं किसी को प्राप्त हो तो सूचित करने का अनुरोध है। कइ चूर्णियों की प्रतिये १-२ जगह ही मिलती है उनकी कइ प्रतिलिपियें करवा लेना आवश्यक है । अन्यथा उनके लुप्त-विच्छेद हो जाने की संभावना है।
स्पष्टीकरण-इस लेख में प्रतियों के लिये जो संकेत के रूप में सूचन किया गया है उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है। वृ. बृहत् टिप्पनिका ली. लीबडी भंडार सूचि । ह. हमारे संग्रह में भां. भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्युट, पुना खं. खंभात, शांतिनाथ भंडारसूचि जे. जेसलमेर भंडार, पं. पंचायती भंडार, उ. उल्लेख मु. मुद्रित .
चूणि साहित्य आगमनाम
परिमाण कर्ता रचनासंवत् विशेष अंग१. आचारांग चूर्णि ग्रं. ८३०० वृ., ली. खं.
मुद्रित २. सूयगडांग चूर्णि अं. १०००० बृ.,
___(प्रत १२०००) ली. ३. समवायांग चूर्णि पं. ४०० (ज्ञानभण्डार प्रति २२९ पत्रावली में उल्लेख है) ४. भगवती चूर्णि ग्रं. ३११४ बृ.(उ. ४०००)* - अपूर्ण हमारे संग्रह में ५. उपाशकदशा चूर्णि पं. १०१-
जैसलमेर प्रति नं.१०-३३३ उपांग६. जीवाभिगम चूर्णि नं. १५०० बृ., जैन ग्रन्थावली में, पाटण में है ७. जम्बूद्वीपपन्नति चूर्ण पं. १८७९ बृ., ३ भां. जे. ह. खं
___ मुद्रित
छेदमत्र
मुद्रित
८. A. निशीथ चूर्णि सूत्रभाष्याणि अं. २८००० जे. खं.
B. ,, ,, विशेष चूणि जिनदास महत्तर जे. .