Book Title: Jain Dharm Prakash
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Parishad Publishing House Bijnaur

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Page 13
________________ का सच्चा स्वरूप जनता को वतलावै । इसी प्राशय को लेकर यह पुस्तक संक्षेप में लिखी गई है। उन लोगों के लिये जिनके चित्त में जैनधर्मसे अज्ञान है, हम उनके शानभाव को हटाने के लिये हम इस भूमिका में थोड़ा सा प्रयास इसलिये करते हैं . कि वे भाई भी हमारी भूमिका पढ़कर अज्ञान छोड़ कर जैन: धर्म को जानने के उत्सुक होजावें। जैनी नास्तिक है क्योंकि हमारे वेदोको नहीं मानते, यह ... कहना तो वैसाही है जैसाजैनी या ईसाई या मुसलमान कह सकते हैं कि जो हमारे शास्त्र का न माने-वही नास्तिक या काफ़िर है । जब मिन्न २ मत हैं तब एक मतके धारी दूसरे के मतके शास्त्र को अपनी मान्यता की कोटि में किस तरह रख सक्ते हैं ? जैनो नास्तिक है, क्योंकि वे ईश्वर को नहीं मानते हैं, यह बात विचारणीय है । जैन लोग परमात्माको या ईश्वर को मानते हैं, परन्तु वे किसी एक ईश्वर को कर्ता व दुःख का फलदाता नहीं मानते, जैसा मीमांसक व साँख्य ईश्वर को जगत् का कर्ता नहीं मानते । भगवद्गीता में ही एक स्थल में (अध्याय ५ श्लोक १४, १५ में ) कहा है कि "न कर्तुत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः। न कर्म फल संयोग स्वभावस्तु प्रवर्तते ।। नादत्ते कस्य चित्पाप न कस्य मुकृत विभुः। अज्ञानेनातं ज्ञानं तेन मुबन्ति जन्तवः ।। अर्थात्-श्वर जगत् के कर्तापनेको या कमों को नही बनाता है और न कर्म फलके संयोगकी व्यवस्था ही करता है, मात्र स्वभाव काम करता है-परमात्मा न किसी को पाप

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