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( त ) इस विषय का विशेष कथन Ancient India by Magasthenese में इस प्रकार दिया है कि " लोग पवित्र वस्तु व जल लेते थे, अनेक धातुओंको ज़मीनसे निकाल कर वस्तुये बनाते थे, किसानों को पवित्र समझा जाता था युद्ध के समय में भी कोई शत्रु उनको कष्ट न देता था, सब कोई अपने ही वर्ण में विवाह करते थे व अपने पुरुषोंका व्यवसाय करते थे। विदेसियों की रक्षा का पूर्ण प्रवन्ध था। वे अपने माल को विना रक्षक छोड़ देते थे। वे यद्यपि सादगी से रहते थे, तथापि उस समय स्वर्ण और रत्नों के पहनने का बहुत रिवाज था। सत्य और धर्म की बड़ी ही प्रतिष्ठा करते थे (Truth & Virtue they held alıke in esteem) i gra चावल खाने का अधिक रिवाज था। विद्वानों और तत्वज्ञों की राजद्वार में बड़ी प्रतिष्ठा थी।"
जैनियों को यह उपदेश है कि छान कर पानी पिओ, यह बड़ा ही उपयोगी है। इस के द्वारा पानी में जो कीड़े होते हैं उनकी रक्षा होती है और साथ ही अपने शरीर की भी रक्षा होती है अर्थात् जो रोगी कीड़े रोग कर सकते थे, वे उदर में नहीं जा सकते है।
जैनधर्म ने स्वतन्त्रताकी शिक्षा निम्न श्लोक में दी है:नयत्यात्मानमात्मैव जन्मनिर्वाणमेव वा । गुरुरात्मात्मनस्तस्मानान्योऽस्ति परमार्थतः ॥ ७॥
-समाधिशतक भावार्थ-यह आत्मा स्वयं ही आपको चाहे संसारमें ले नावे व चाहे निर्वाणमें लेजावे। इसलिये वास्तवमें आत्माका