Book Title: Jain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Author(s): Naginashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ आशीर्वचन प्रस्तुत पुस्तक में जैन दर्शन के कुछ बिन्दुओं को रेखांकित करने का प्रयत्न किया गया है। दर्शन और गंभीरता दोनों में गंभीर संबंध है। गंभीरता को प्रस्तुत करना लेखक के लिए कठिन काम है तो गंभीरता तक पहुंचना पाठक के लिए भी सरल काम नहीं है। साध्वी नगीनाजी ने समीक्षात्मक दृष्टि से जैन दर्शन को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। उसमें उनका अध्ययन और चिन्तन-दोनों हैं। जन-साधारण के लिए पुस्तक उपयोगी बनेगी। -आचार्य महाप्रज्ञ २५-४-२००२ महावीर जयन्ती गुडामालानी (बाड़मेर) - पांच

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