Book Title: Jain Darshan Aur Sanskriti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अनुक्रम
दर्शन
१. दर्शन है सत्यं शिवं सुन्दरं की त्रिवेणी
१-२०
दर्शन की परिभाषा १; मूल्य - निर्णय की दृष्टियाँ ३; दर्शन की प्रणाली ५; आस्तिक दर्शन की भित्ति-आत्मवाद ५; धर्म-दर्शन ६; मोक्ष ७; सत्य की परिभाषा ८; दर्शन की उत्पत्ति ९; आगम तर्क की कसौटी पर ११; तर्क का दुरुपयोग ११; दर्शन का मूल ११; दर्शन की धाराएँ १४; जैन दर्शन की आस्तिकता १४; श्रद्धा और युक्ति का समन्वय १५; मोक्ष दर्शन १५; जैन दर्शन का आरम्भ १५; जैन दर्शन का ध्येय १६; पलायनवाद १७ २. आओ चलें अमूर्त विश्व की यात्रा पर
२१-३८
विश्व का वर्गीकरण २२; अस्तिकाय २२; द्रव्य २३; आकाश और दिक् २६; दिक् २८; धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय २९; धर्म-द्रव्य, अधर्म-द्रव्य का यौक्तिक आधार ३१; काल ३४; विज्ञान की दृष्टि में आकाश और काल ३४; अस्तिकाय और काल ३५; काल के विभाग ३६
३. अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव नृत्य
३९-५५
पुद्गल ३९; परमाणु का स्वरूप ४०; पुद्गल के गुण ४१; परमाणु की अतीन्द्रयता ४२; परमाणु- समुदाय और पारमाणविक जगत् ४३; स्कन्ध-भेद की प्रक्रिया के कुछ उदाहरण ४३; पुद्गल में उत्पाद, व्यय और धौव्य ४४; पुद्गल की द्विविध परिणति ४४; पुद्गल के प्रकार ४४; पुद्गल कब से कब तक ? ४५; पुद्गल का अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व ४५; परिणमन के तीन हेतु ४६; पुद्गलों का श्रेणी विभाग ४६; प्राणी और पुद्गल का सम्बन्ध ४८; पुद्गल की गति ४९, पुद्गल की अवस्थाएँ ४९; शब्द ५०, बन्ध ५०; सूक्ष्मता और स्थूलता ५२; छाया ५२ प्रतिविम्ब - प्रक्रिया और उसका दर्शन ५३; प्राणी जगत् के प्रति पुद्गल का उपकार ५३० एक द्रव्य : अनेक द्रव्य ५४; सादृश्य-वैसदृश्य ५४
४. पहले अण्डा या पहले मुर्गी ?
५६-६७
विश्व के आदि-बिन्दु की जिज्ञासा ५६; लोक- आलोक का परिमाण ५६; लोक-आलोक का संस्थापन ५६; लोक- स्थिति ५८; सृष्टिवाद ५८; परिवर्तन और विकास ५९; शुद्ध आत्मा का स्वरूप ६२; परिवर्तन और विकास की मर्यादा ६४; असम्भाव्य कार्य ६४, समस्या और समाधान ६४

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