Book Title: Jain Darshan Aur Sanskriti Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ प्राक्कथन सम्प्रदाय-निरपेक्षता (secularism) को सुरक्षित रखते हुए धर्म, दर्शन, संस्कृति आदि की विभिन्न परम्पराओं का विशुद्ध शैक्षणिक पठन-पाठन (purely academic studies) विश्वविद्यालीय पाठ्यक्रम (syllabus) का अंग बने, यह बहुत अपेक्षित है। यदि भारतीय विद्यार्थी भारतीय संस्कृति, भारतीय दर्शन, भारतीय धर्म-परम्परा, भारतीय साहित्य, भारतीय कला आदि के सैद्धान्तिक एवं यथासंभव प्रायोगिक बोध से वंचित रहेगा, तो यह कैसे माना जा सकता है कि भावी पीढ़ी भारत के गौरवशाली अतीत पर नाज करेगी या उसकी सामयिक प्रासंगिकता या संगति (relevence) की मीमांसा कर सकेगी? सचमुच, शिक्षा के क्षेत्र में उक्त विषय की सुविधा देना भारत के इतिहास को जानने के लिए ही नहीं अपितु नया इतिहास गढ़ने के लिए एक साहसिक कदम है। इसके लिए अजमेर विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद् तथा उसके कुलपति डॉ. उपाध्याय शत-शत साधुवाद के पात्र हैं। विश्वविद्यालय के बी. ए. के पाठ्यक्रम में 'जैन-विद्या' और 'जीवन-विज्ञान' के संक्षिप्त विषयों का समावेश कर विद्यार्थियों को जीवन-निर्माण के लिए एक अमूल्य अवसर प्रदान किया है। प्रस्तुत पुस्तक उसी पाठ्यक्रम में प्रथम वर्ष के द्वितीय पत्र के पाठ्यक्रम के लिए निर्मित पाठ्यपुस्तक है। जैन दर्शन और संस्कृति के विशाल विषय को संक्षिप्त, सरल और रोचक रूप में प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयल इसमें किया गया है। 'जैन-दर्शन' भारतीय दर्शनों की विभिन्न धाराओं में से एक महत्त्वपूर्ण धारा है, जिसने प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान युग तक अपना अस्तित्व बनाये रखा है। यह उसकी प्राचीनता एवं दीर्घजीविता का साक्ष्य है। जैन-दर्शन के तत्त्व जहाँ आध्यात्मिक अनुभूति के आधार पर स्थित हैं, वहाँ उन्हें बुद्धिगम्य बनाने के लिए हेतुवाद तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को काम में लिया गया है। जैन-दर्शन के इतिहास को जानने के लिए भगवान ऋषभ से लेकर वर्तमान युग तक की लम्बी यात्रा तय करनी आवश्यक है। साथ ही विशाल जैन वाङ्मय का सिंहावलोकन अपेक्षित है, जो प्राकृत और संस्कृत भाषा में तथा अनेक प्रादेशिक भाषाओं में भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। जैन संस्कृति श्रमण-संस्कृति की सशक्त धारा है जिसने संयम, अहिंसा, व्रत आदि से जन-जीवन को अप्लावित किया है, चित्रकला, शिल्पकला, स्थापत्यकलाPage Navigation
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