Book Title: Jain Darshan
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Mallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon

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Page 12
________________ - - जैन-दर्शन कर्मोका नाश किस प्रकार कर सकता है यह सब सम्यक् चारित्र के विषय में निरूपण किया गया है। भगवन् जिनेन्द्र देव सर्वन है, सर्वदर्शी हैं और राग हप आदि समस्त विकारों से रहित हैं । अतए ऐसे भगवान् जिनेन्द्र देव जो कुछ मोन-माने का उपदेश देते हैं वह उपदेश यथार्थ मोक्षमार्ग कहलाता है । राग न होने से वे न तो किसी का पक्षात करते हैं और द्वेप न होने से वे किसी का विरोध भी नहीं करते। उनके पूर्ण ज्ञान में और पूर्ण दर्शन में जो कुछ देखा या जाना गया है वही उपदेश देते हैं और वही यथार्थ मोक्षमार्ग कहलाता है। २-धर्मका स्वरूप जो मोक्षमाग है वही धर्म है और वही आत्माका स्वभाव है। यह निश्चित सिद्धांत है कि आत्मा का स्वभाव प्रगट होने से ही श्रात्माके राग द्वेपादिक विकार और ज्ञानावरणादिक कर्म नष्ट हो सकते हैं और इन्हीं विकारों को या कर्मों को नष्ट करने के लिये ये संसारी जीव धर्मका पालन करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि आत्माक जितने स्वभाव हैं उनका प्रकट होना धर्म है। आत्मा के अनेक स्वभाव है। परन्तु उनमें मुख्य और विशेष स्वभाव रत्नत्रय है और इसीलिये रत्नत्रय धर्म है तथा रत्नत्रय ही मोक्षका साक्षात् मार्ग है। जो इस जीवको संसार के दुःखों से छुड़ाकर मोनरूप अनन्त सुखमें स्थापन करदे उसको धर्म कहते हैं । शास्त्रकारों ने यही धर्म

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