Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag

Previous | Next

Page 14
________________ साधना का संयममय साधु जीवन स्वीकार किया। परम पूज्य श्रमणसंघ के आचार्य सम्राट १००८ पू. आनंदऋषिजी म.सा., वर्तमान आचार्य सम्राट १००८ पू. डॉ. शिवमुनिजी म.सा., आनंद कुलकमल प्रवर्तक श्री. पू. श्री कुंदनऋषिजी म.सा., अनंत उपकारी ज्ञान एवं साधना की दिव्य ज्योति प्रातः स्मरणीय विश्वसंत दादीजी म.सा., पू. श्री. उज्जवलकुमारीजी म.सा. तथा उज्ज्वल संघ प्रभाविका श्रुत स्थविरा साध्वीरत्ना गुरुणी मैया पू. डॉ. धर्मशीलाजी म.सा. के सानिध्य में भागवती दीक्षा अंगीकार की। पू. गुरुणी मैया के सानिध्य में जो सीखने को जानने को मिला वह मेरे श्रमणी जीवन के लिए वरदान सिद्ध हुआ। ___ मैं गुरुणी मैया की कृपादृष्टि से संयम पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रही। साधु-साध्वी के जीवन में संयम का सर्वोपरि स्थान है। उनके साथ यदि सद्विद्या का संयोग बनता है तो संयम और अधिक उज्ज्वल और प्रशस्त होता जाता है। मैंने मेरी गुरुणी मैया पू. डॉ. धर्मशीलाजी महासतीजी के निर्देशन और मार्गदर्शन में अपना अध्ययन गतिशील रखा। जैन विश्वभारती मानद विश्वविद्यालय, लाँडनू (राज.) से मैंने प्राकृत में एम्. ए. फर्स्ट क्लास से उत्तीर्ण किया। यद्यपि एक जैन साध्वी के लिए लौकिक परीक्षा का कोई महत्त्व नहीं है, किन्तु परीक्षा के माध्यम से अध्ययन करने में एकाग्रता, सुव्यवस्था और गूढ़ अध्ययन होता है। एम्.ए. होने के बाद मैंने निश्चय किया कि यदि भविष्य में पीएच.डी. करने की संधि मिली तो मैं 'कर्म सिद्धांत' पर ही पीएच.डी. करूँगी। . पू. गुरुणीमैया के मुखारविंद से कर्मसिद्धांत पर अनेक प्रवचन सुनने से भी मुझे कर्म सिद्धांत पर पीएच.डी. करने की प्रेरणा मिली। इसलिए मैंने मेरे शोध प्रबंध का विषय जैन धर्म में कर्म सिद्धांत यह विषय मैंने पसंद किया। पूना विश्वविद्यालय ने और मेरे मार्गदर्शक डॉ. कांचन मांडे इन्होंने मुझे यह विषय लेने की अनुमति दी। कर्मसिद्धांत के विषय में लिखने की जब अनुमति मिली तब मुझे अत्यन्त आनंद हुआ, क्योंकि मुझे मेरा मन पसंद विषय मिला। कर्मसिद्धांत के विषय में प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, मराठी, इंग्लिश इत्यादि भाषाओं में जो लेख, किताबें मिली उनका रसास्वाद लेकर तात्त्विक विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन करने का निर्णय किया। साधुचर्या में समर्पित जीवन में वीतराग प्रभु की आज्ञा में रहकर आचार धर्म का पालन करके संयम और वैराग्य को उत्तरोत्तर विशुद्ध करना, मोक्षमार्ग की उपासना करना, वैसे ही स्व पर कल्याण की प्रवृत्ति का विकास करना यही मेरा अनिवार्य धर्म है। ... गुरुणीमैया पू. डॉ. धर्मशीलाजी म.सा. की असीम कृपा से ज्ञान वृद्धि के लिए मुझे

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 422