Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag

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Page 12
________________ वह आशारूपी दीप तत्त्वज्ञान और भगवान महावीर के कर्मवाद को समझना है। _ विज्ञान के साथ अगर तत्त्वज्ञान और भगवान महावीर का कर्मवाद जुड़ जाए तो विज्ञान विनाश के स्थान पर विकास की दिशा में आगे बढ़ेगा। विज्ञान की शक्ति पर तत्त्वज्ञान का अंकुश होगा तब विश्व में सुख शांति रहेगी। भ. महावीर का तत्त्वज्ञान और कर्मवाद का रहस्य अमृततुल्य रसायन है। वही इस विश्व को असंतोष और अशांति की व्याधि से मुक्त कर सकता है। विज्ञान के कारण भौतिक साधनों की बड़ी उन्नति हुई है। उनके कारण मानव को बाह्य सुख तो प्राप्त हुआ है, लेकिन आध्यात्मिक दुनिया में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। ___ आज विज्ञान की जितनी उपासना हो रही है, उतनी तत्त्वज्ञान की उपेक्षा हो रही है। यही कारण है कि मानव को आत्म शांति प्राप्त नहीं हो रही है। तत्त्वज्ञान के कारण तथा कर्मवाद के रहस्य को समझने के कारण ऐसी शांति प्राप्त होती है जिससे वह संसार की प्रत्येक क्रिया सावधान पूर्वक करेगा। आज विज्ञान जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रगति कर उसमें खूब क्रांति और उत्क्रांति कर रहा है। वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण मानव शक्तिशाली बना है, यह निर्विवाद सत्य है, परंतु इस शक्ति का उपयोग किस प्रकार करना है इसका निश्चय विज्ञान नहीं कर सकता। शक्ति का उपयोग विकास के लिए करना है या विनाश के लिए यह मानव के हाथ में हैं, यह निर्णय लेने में भगवान महावीर का तत्त्वज्ञान और कर्मवाद मानव को मार्गदर्शक हो सकता है। प्रख्यात शास्त्रज्ञ तथा गणितज्ञ आलबर्ट आईनस्टाइन ने अणु शक्ति का आविष्कार किया, यह अणु शक्ति जिस मूल द्रव्य से निर्मित होती है वह दश पौंड यूरेनियम संसार को एक महिने तक बिजली उपलब्ध करा सकता है और मानव जीवन को अधिक सुखी कर सकता है, परंतु वही युरेनियम अटमबाँब तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाए तो मानव जीवन नष्ट भी हो सकता है। अमेरिका ने अणु शक्ति का उपयोग करके अणुबाँब तैयार किये और हिरोशिमा तथा नागासाकी इन दो जापानी शहरों पर उन्हें गिराकर लाखों लोगों का जीवन ध्वस्त किया, इसलिए मानवीय प्रगति सच्चे अर्थों में हो तो विज्ञान और तत्त्वज्ञान का साथ आवश्यक है। विज्ञान और तत्त्वज्ञान प्रगति के रथ के दो पहिए हैं। रथ चलाने के लिए जिस प्रकार दो पहिये आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार प्रगति के कदम सही दिशा में बढ़ाने के लिए विज्ञान, तत्त्वज्ञान और धर्म का साथ अत्यंत आवश्यक है। विज्ञान रूपी मोटर के लिए तत्त्वज्ञान रूपी स्टियरिंग व्हील अनिवार्य है। इसलिए वैज्ञानिक प्रगति के साथ तात्विक प्रगति होना भी आवश्यक है।

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