Book Title: Jain Bauddh aur Gita ke Darshan me Karm ka Swarup Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 3
________________ १७० ] [ कर्म सिद्धान्त बौद्ध दृष्टिकोण : बौद्ध दर्शन में कायिक, वाचिक और मानसिक आधार पर निम्न १० प्रकार के पापों या अकुशल कर्मों का वर्णन मिलता है :-' (अ) कायिक पाप : १. प्राणातिपात-हिंसा, २. अदन्नादान-चोरी या स्तेय, ३. कामेसु-मिच्छाचार, कामभोग सम्बन्धी दुराचार, (ब) वाचिक पाप : ४. मृषावाद-असत्य भाषण, ५. पिसुनावाचा-पिशुन वचन, ६. परुसावाचा-कठोर वचन, ७. सम्फलाप-व्यर्थ आलाप, (स) मानसिक पाप : ८. अभिज्जा-लोभ, ६. व्यापाद-मानसिक हिंसा या अहित चिंतन, १०. मिच्छादिट्ठी-मिथ्या दृष्टिकोण । अभिधम्म संगाहो में निम्न १४ अकुशल चैतसिक बताए गए हैं : १. मोहचित्त का अन्धापन, मूढ़ता, २. अहिरिक-निर्लज्जता, ३. अनोत्तपयं-अ-भीक्ता (पाप कर्म में भय न मानना)२, ४. उद्धच्चं-उद्धतपन, चंचलता, ५. लोभोतृष्णा, ६. दिट्ठि-मिथ्या-दृष्टि, ७. मानो-अहंकार, ८. दोसो-द्वेष, ६. इस्साईर्ष्या (दूसरे की सम्पत्ति को न सह सकना), १०. मच्छरियं-मात्स्पर्य (अपनी सम्पत्ति को छिपाने की प्रवृत्ति), ११. कुक्कुच्च-कौकृत्य (कृत-अकृत के बारे में पश्चात्ताप), १२. थीनं, १३. मिद्ध, १४. विचिकिच्छा-विचिकित्सा (संशयालुपल)। गोता का दृष्टिकोण : गीता में भी जैन और बौद्ध दर्शन में स्वीकृत इन पापाचरणों या विकर्मों का उल्लेख सम्पदा के रूप में किया गया है। 'गीता रहस्य' में तिलक ने मनु स्मति के आधार पर निम्न दस प्रकार के पापाचरण का वर्णन किया है। (अ) कायिक : १. हिंस, २. चोरी, ३. व्यभिचार । (ब) वाचिक : ४. मिथ्या (असत्य), ५. ताना मारना, ६. कटुवचन, ७. असंगत बोलना । (स) मानसिक : ८. परद्रव्य अभिलाषा, ६. अहित चिन्तन, १०. व्यर्थ अाग्रह । १-बौद्ध भा० व०, पृष्ठ ४८० । २-अभिधम्मत्थ संगहो, पृष्ठ १६-२० । ३-मनुस्मृति १२/५-७ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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