________________
यदि किसी को है तो वह जैनाचार्यों को है। जैसे-जैसे दार्शनिक विचारों का । भारतवर्ष में विकास और विस्तार बढ़ता गया वैसे-वैसे जैनों का अनेकान्त उन सब का समन्वय करता गया यह वात कालक्रम से निर्मित जैन दार्शनिक अर्थों से सिद्ध होती है। वस्तुतः देखा जाय तो भारतवर्ष के दार्शनिक विचारों के क्रमिक विकास को अपने में संनिविष्ट करनेवाले ये जैन ग्रन्थ उपेक्षा का नहीं किन्तु अभ्यास का विषय बने यह आवश्यक है। .
अनेकान्त की ही तरह भारतवर्ष में बुद्ध और महावीर से लेकर महात्मा गाँधी, विनोबा तक हिसा के विचार का विकास हुआ है तथा आचरण में अहिंसा की व्यापकता क्रमशः बढ़ते-बढ़ते अाज राजनैतिक क्षेत्र में भी पहुँच । गई है। ऐसी अहिंसा के विशेष अध्ययन की सामग्री जैन ग्रन्थों में है। जिस अहिसा के सिद्धान्त का अग्रदूत भारतवर्ष राष्ट्रसमूह में बना है उस अहिंसा - की परम्परा का इतिहास खोजना अनिवार्य है और उसके लिए तो जैन ग्रन्धों का अध्ययन अनिवार्य होगा ही। यह एक अच्छा लक्षण है जिससे कि जैन अन्थों के अध्ययन की प्रगति अवश्य होगी ऐसा मैं मानता हूँ।
आधुनिक भाषाओं के विकास का अध्ययन बढ़ रहा है और प्रादेशिक प्रचलित भाषानो के उपरान्त बोलियों का अध्ययन भी हो रहा है-यह एक अच्छी बात है जिसके कारण प्राकृत भाषा का भापादृष्टि से अध्ययन अनिवार्य हो गया है। किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि भारतवर्ष के विश्वविद्यालयों की उपेक्षा अभी भी इस ओर बनी हुई है। जब तक प्राकृत भाषा का विधिवत् अध्ययन नहीं होता तब तक आधुनिक प्रादेशिक भापात्रो और बोलियों का अध्ययन भी अधूरा ही रहेगा। आशा है इस ओर विश्वविद्यालय के अधिकारीवर्ग ध्यान देंगे और इस कमी को पूरा करेंगे। साहित्योद्धार के प्रयत्न
याकोबी जैसे कुछ विद्वानों ने जैन ग्रन्थों के आधुनिक पद्धति से सस्करण प्रकाशित करके विद्वानों को इस साहित्य के प्रति आकृष्ट किया । आधुनिक युग प्रचार-युग है । अतएव उसका असर जैनों में भी हुआ और इस दिशा में भी प्रयत्न हुए । फलस्वरूप माणिकचंद दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, जैन साहित्य उद्धारक फंढ ग्रन्थमाला, आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला,
मूर्तिदेवी जैन अन्य माला, जीवराज जैन ग्रन्थ माला, श्रादि ग्रन्थमालाओं में • श्राधुनिक ढंग से जैन पुस्तकें प्रकाशित होने लगीं। इतना होते हुए भी जैन