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अध्ययन आवश्यक है। तज्ज्ञ विद्वान् इस ग्रन्थ की सामग्री का इस दृष्टि से अध्ययन करेंगे तो बहुत-सी नवीन सामग्री उन्हें मिलेगी ऐसा मेरा विश्वास है। । धवला' टीका के साथ 'षट्खडागम' के अंतिम तीन भाग-१४, १५
और १६ प्रकाशित हो गये हैं। और अब यह महाग्रन्थ विद्वानों को पूर्ण उपलब्ध हो गया है । डा० हीरालालजी को इसके लिये अभिनन्दन है।
भारतीय ज्ञानपीठ के महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों में पंडित श्री महेन्द्रकुमारजी द्वारा संपादित अकलंककृत 'तत्वार्थवार्तिक' का दूसरा भाग प्रकाशित हो जाने से इस दार्शनिक ग्रन्थ का सुसम्पादित संस्करण विद्वानों को अब उपलब्ध हो गया है। महाबन्ध का चौथा-पाँचवाँ भाग पं० श्रीफूलचन्द्रजी द्वारा -संपादित हुआ है। 'ज्ञानपीठ पूजाञ्जलि' का संपादन डा० उपाध्ये ने और पं० फूलचंद्रजी ने किया है। उससे दिगम्बर समाज में प्रचलित नित्य-नैमित्तिक कायों में उपयोगी संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी पाठों का शुद्ध रूप जिज्ञासुश्री को मिल गया है। इतना ही नही किन्तु संस्कृत प्राकृत का हिन्दी अनुवाद
भी होने से मुमुक्षुओं के लिये यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। । पूज्यपाद कृत 'जैनेन्द्र व्याकरण' प्राचार्य अभयनन्दिकृत 'महाधुनि' के साथ पं० शंभुनाथ त्रिपाठी और पं० महादेव चतुर्वेदी के द्वारा संपादित हो कर अपने पूर्ण रूप में प्रथम बार ही विद्वानों के समक्ष उपलब्ध हो रहा है । यह व्याकरणशास्त्र के तुलनात्मक अध्येताओ के लिए ग्रन्थरत्न सिद्ध होगा। डॉ. वासुदेव शरण ने इसकी भूमिका लिखी है और उन्होंने कई नये ऐतिहासिक तथ्यों की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्पित किया है। 'व्रततिथिनिर्णय नामक ग्रन्थ का संपादन पं० नेमिचंद ने कुशलता से किया है और विस्तृत भूमिका में विविध व्रतों और उद्यापनों का परिचय दिया है। मूल ग्रन्थकर्ता का निर्णय हो नही सका है किन्तु संपादक के मत से सत्रहवीं शती के अंतिम चरण में किसी भट्टारक ने इसका सकलन किया है। 'हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन' में प्र.० नेमिचंद्र ने दो.भाग में अपभ्रंश भाषा के और हिन्दी भाषा के जैन लेखको की विविध विषयक कृतियों का परिचय दिया है । 'मगलमत्र णमोकार-एक अनुचितन' में प० नेमिचंद्र ने इस महामन्त्र का माहात्म्य वर्णित किया है और साथ ही योग, श्रागम, कर्मशास्त्र, गणितशास्त्र, कथासाहित्य आदि में इस मंत्र की जो सामग्री मिलती है और उन शाखों से जो इसका संबंध है उसे विस्तार से निरूपित किया है। इन सभी ग्रन्थों के प्रकाशन के लिये भारतीय ज्ञानपीठ के संचालकों को विशेषतः धन्यवाद है।